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Showing posts from August 31, 2014

हम कुंवारे है ब्रम्हचारी नही

क्यूं कर रट लगाए रहते हो...शादी विवाह की ? अरे न हुई हमारी तो कौन सी दुनिया लुट गई तुम्हारी। हम सबने नही की शादी इसी लिए संभल गई देश की आबादी वरना खाली बिठा देते ऐसे दिमागों को तो सिवाय बच्चे पैदा करने के और कोई काम न करते... कैसे करते देश सेवा जो घर की भाजी तरकारी में ही जीवन फंसा बैठते, कैसे लिखते काव्यग्रंथ कैसे गाते गीत सुहाने जो कपड़े बरतन में ही बिताते । हममें वो दम नही जो घर गृहस्थी के चक्र के साथ जीवन का सुदर्शन चक्र भी घुमाते। ऐसा नही कि हमें कभी कोई मिले नही पर नसीब ऐसे हमारे कि वो सब आए जीवन में पर टिके नही... हमने तो कहा ही था कि हम कुंवारे है ब्रम्हचारी नही दो ने नर ढूंढने का कष्ट नही उठाया और दो के भाग्य में हो कर भी नारी नही