दक्कन के नासूर ने औरंगजे़ब की जान ले ली...स्वघोषित आलमग़ीर (विश्वविजेता) का राष्ट्रविजय स्वप्न अधूरा ही रह गया। जिस-जिस की नज़र उस ओर थी वो कभी सलामत नही रहे, द्राविड़ ही वास्तविक हिन्दु स्थान है जहां से भारत के उस विशाल स्वरूप का प्रारंभ होता है जिसे सही मायनों में स्वदेश की संज्ञा दी जा सकती है। हमारे लिए पाश्चात्य कोई सभ्यता हो सकती है किन्तु दक्षिण भारत, अंग्रेज़ी को मात्र भाषा और विदेशी चाल-चलन को दिमाग़ी फितूर का नाम देता है, जिनके भीतर तनिक भी राष्ट्रधर्म जीवित है वे ही दक्षिण के इस स्वरूप को देख पाते हैं, अन्यथा सड़क के किनारे फास्टफूड समझकर इडली-डोसा की प्लेट में दक्षिण भारत को खोजने वाले लोगों की उत्तर भारत में कमी नही है। दक्षिण भारत किसी व्यंजन का नाम नही, दक्षिण भारत तो वह अजेय दुर्ग है जिस पर विजय पाकर वास्तविक राष्ट्रीय स्तर की राजनीतिक पार्टी बनने की चाह न जाने कितने ही राजनीतिक दलों का प्रमुख ध्येय रहा होगा। भाजपा का अगला पड़ाव बंगाल से कहीं ज़्यादा कठिन सिद्ध होगा, राष्ट्रविजय का स्वप्न लिए भाजपा अब भारत के उस हिस्से को बढ़ रही है जहां उसे अपनी सारी कूटनीति, अनुभव और राज
ऋतु कृष्णा चटर्जी/ Ritu Krishna Chatterjee