एक रेशम के कीड़े की लार से भी महीन अंतर होता है उन दोनों में जिसमें से पहला प्रेम है और दूसरा मोह। उसे हम लोग प्रेम कहते हैं जिसे बांटो या न बांटो जहां भी होता है दिन ब दिन बढ़ता ही जाता है, पहले वो प्यार सिर्फ अपने खिलौनों किताबों कपड़ों खाने पीने और सोने तक ही सीमित था...फिर सीमा बढ़ी प्यार मां बाप दोस्तों संबंधियों घर के सभी सदस्यों तक आ गया, फिर और बढ़ा घर बाहर के लोगों से भी जा के जुड़ा...और फिर दिल ने पिघलना भी सीख लिया। प्यार के लिए क्या चाहिए? शरीर नही...दो अलग अलग लोग...नही? फिर कुछ ख़ास तरह के लोग...न नही? कोई शर्त नही? फिर कैसे हो प्रेम? मैं बताती हूं इस बिन बुलाए मेहमान की कारिस्तानियां... ये चुपचाप आपके कानों में रात दिन फुसफुसाता रहता है...दिल के धड़कने के साथ ही साथ ये दिल को पुराने सामान जमा रखने का पिटारा बना देता है...कि साफ करना भी असंभव हो जाए। दिल का यही बंद पिटारा मोह के अंधेरे में डूबने लगता है, प्रेम की उजाले से भरी खिड़कियों पर भावुकता का सांकल चढ़ जाता है। सबसे बड़ी शैतान इस प्रेम की सहेली ये दो आंखें जो सामने वाले को तो देख पाती हैं, पर खुद को भूल जाती हैं सामने वाले
ऋतु कृष्णा चटर्जी/ Ritu Krishna Chatterjee