अभी कल ही तो मिला था, फिर पता नही कहां गया? मुझे समझ नही आता जब उन्हे इतनी जल्दी होती है तो वो आते ही क्यूं हैं! बेकार का ताम झाम, तैयारी बैठकी, लो वो आया और ये लो जैसे ही बैठने चले वो चल दिए। गुस्सा तो कई बार आता है लेकिन उस पर बिगड़ कर आगे मिलने का मौका मैं खोना नही चाहती। उसके बिना तो सारे काम ही रूक जाते हैं मेरे...दूसरों के पास भी जाना आना है उसका, पर मुझे बुरा नही लगता हां कभी कभी ऐसा ज़रूर लगता है कि वो पहले और ज़रा देर तक सिर्फ मेरे पास ही ठहरे। पहले बहुत कम आता था वो, शायद मैं उसको अहमियत कम देती थी तो वो देर तक मुझे सताता रहता था, सुकून से एक मन से कोई काम करने ही नही देता। अब इंतज़ार करती हूं तो साहब भाव ही नही देता। ये सब तो पुरानी रीत है, जबतक पीछे भागो कोई पूछता नही और मुंह फेर लो तो पीछा होने लगता है। उस दिन देर तक उसकी राह देखती रही, घण्टों आंखें खोले छत की ओर ताकते हुए वक़्त बीता, फिर बेवजह टेलीविज़न खुला रहा, मैं बैठी रही कुछ भी नही देखा, थोड़ी नमकीन चबाई, थोड़ी चाय भी पी ली, काली चाय हल्की मीठी चुस्की ले लेकर उसके आने की आहट सुनने का प्रयास करती रही। अचानक सोचा दूसर
ऋतु कृष्णा चटर्जी/ Ritu Krishna Chatterjee