आप का कष्ट आपका ही रह गया, कोई दर्द बांटने भी नही आता अब, उल्टे वो हैं कि बेरहमी से चेहरा फेर कर चल दिए। एक मोदी एक शाह बाकी सब बिन टोपी बिन राह... गुजरात में तो बस धोती ही खींची गई थी यहां तो मफलर उतना भी नही छुपा पाएगा। कुमार विश्वास का ज़ख़्म भरने के बजाए दर्द के मारे ऐसा रिसा कि नासूर बनकर कविता की पंक्तियों की स्याही बन बैठा, और आधुनिक कवियों का हाल देखिए ! इको फ्रेन्डली कवि हैं, कागज़ नही बरबाद करते वरन 2-4 लाईनों की प्रेरणा मिलते ही ट्वीट कर देते हैं जिससे बाकी की कविता हम स्वयं ही पूरी कर लें और जो समझ आए समझ लें। किरण बेदी की बेरूख़ी की वजह क्या हो सकती है, बैठ कर आपको ही सोचना होगा, सारी ज़िन्दगी तिहाड़ छाप कैदियों से उकता कर वो संभवतः एक बार फिर वहीं के लोगों में दोबारा न बैठना चाहती हों। आखि़र कहीं तो धरने से फुरसत मिलनी ही चाहिए। वैसे गुजरातियों को पतंग उड़ाना वास्तव में बहुत ज़्यादा पसंद है और कटी पतंगों को लूटना उससे ज़्यादा पसंद है ये तो उन्होंने साबित कर दिया। महात्मा गांधी, सरदार वल्लभ भाई पटेल छीन लिए कांग्रेस से, यहां झाड़ू और बेदी के बार शाज़िया भी जा रही है। आखि़र कोई क
ऋतु कृष्णा चटर्जी/ Ritu Krishna Chatterjee