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Showing posts from July 27, 2014

हजरतगंज से आगे नही जा सकी

मैं अपने लखनवी ब्लाग में हजरतगंज से आगे नही जा सकी , असल में आजकल उस प्यारे पुराने लखनऊ को किसी नाशुक्रे की नज़र लगी हुई है... तबीयत दुरूस्त नही है मेरे लखनऊ की कर्फयू ... पुलिस ... दंगा फसाद बर्दाश्त नही होता उसे सांस लेने दो ... बख्श दो लखनऊ को... बखश दो ... बख्श दो

बख़्श दो यार ... लखनऊ को जाने दो

ज़रा ठीक ठीक बताएंगे कि लखनऊ किस जात-धर्म वालों कि जगह है, खुली चुनौती है आपको, बस एक बार साबित करते हुए बताईए कि लखनऊ किसका है? चलिए जाने दीजिए इतना बता दीजिए कि यहां मन्दिर ज़्यादा हैं या मस्जिद? जाने दीजिए इसे भी छोड़िए, ये बताईए कि लखनऊ के जन्में कितने हैं और प्रवासी कितने? आप इसमें से किसी भी सवाल का सटीक उत्तर नही दे पाएंगे क्यूंकि लखनऊ के इन्दिरा नगर के फलां मु ... हल्ले के मिश्रा जी गोण्डा से, दीक्षित जी बहराईच से, गुप्ता जी बस्ती से करीब 30 साल पहले आए सस्ते प्लाट लेकर मकान बनाए, और उनके मकानों के पीछे फिरोज़ाबाद से आकर बसे फखरूद्दीन की दूध की डेयरी थी जो उनके लिए सुविधाजनक था और वही उनका प्रिय पड़ोस भी था आज भी है और आगे भी रहेगा। अब उनसे पूछियेगा तो वो सब लखनऊ के ही हैं। पास के ब्लाक में तिवारी जी को आज भी एहसास नही कि उनके मकान के तीन तरफ मुसलिम परिवार बसे हैं, तिवारी जी सहित सभी मुस्लिम परिवार लखनऊ के जन्में हैं और आपस में वे सब सिर्फ पड़ोसी हैं 35 वर्ष से अधिक होने को आए। ये 3ः1 का अनुपात कहीं-कहीं 8ः1 का है तो कहीं पर 5ः5 का भी है। बस कहीं वो ज़्यादा तो कहीं हम, दस्तरख्वान क