Skip to main content

Posts

Showing posts from March 22, 2015

ये अदभुत अनुभूति भी भाप बनकर न उड़ जाए

पैर नही मान रहे मेरे ... बड़ी कोशिश कर रही हूं किसी तरह ख़ुद को भीतर ले जाया जाए, फोन पर बात करते वक़्त तो इतनी तकलीफ महसूस नही हुई फिर अचानक ये क्या हो रहा है। ये डर नही है, ये उलझन भी नही है...ये कोई घबराहट... हां घबराहट सा ही कुछ होगा। वही डर स्कूल में देर से पहुंचने पर जो होता है, पर अब मैं स्कूल में तो हूं ही नही फिर क्यूं और किससे डर रही हूं? नही नही ये तो वो वाली बात भी नही, ये क्या मेरे गाल गीले से हो गए हैं, ये पानी सा क्या है? ये आंसू हैं क्या? पर मैं रो तो नही रही थी, फिर अचानक से क्या हो गया। 15 साल हो गए इस घेरे से बाहर निकले संभवतः शरीर ही बाहर गया मेरा मैं तो वहीं स्कूल में छूट गई। कोई आओ ले जाओ मुझे इतनी देर तक स्कूल में रहना मेरे लिए ठीक है क्या? अभी बाहर मां खड़ी होंगी मुझे लेने आई हैं। सोचते सोचते कब प्रधानाचार्या का कक्ष आया पता ही नही चला...पता चला जब एक आवाज सुनी आओ...आओ ऋतु अंदर आ जाओ! वही स्वर वही अनुशासित और संतुलित लहजा अदभुत आकर्षण...मेरे पैर तो पत्थर से थे पर आवाज सुन कर सीधे भीतर चल दिए। सारे शरीर को इस आवाज की मान लेने की आदत सी है, जैसे घर में मां ने क