भावुक व्यक्ति और उसके विचार दोनों ही बेहद घातक होते हैं, यहां तक के भावुक व्यक्ति या भावुकता भरे विचार दोनों ही एक समान भयंकर परिणाम देने वाले होते हैं। क्षणिक प्रेम, लगाव या सहृदयता भी भावुकता की देन है। भावनाओं का सम्मान करना चाहिए किन्तु भावुकता का तिरस्कार भी उतना ही महत्वपूर्ण है। दोनों के बीच के आकाश पाताल समान अंतर को समझना चाहिए, जो समझ गए वो पार उतर गए और जो भंवर में उलझे डूब गए पर मरे नही वरन उन्हें भी खींच कर साथ ले गए जो उनके आस पास थे, वो कहावत तो है ही कि ‘‘हम तो डूबेंगे सनम, तुमको भी...’’ बहरहाल बसे बसाए घर कार्य और जीवन का सत्यानाश करने का 80 प्रतिशत श्रेय भावुकता को दे देना चाहिए। इससे आपको खु़द को क्षमा करने में विशेष सहायता मिलेगी और यही तो सबसे महत्वपूर्ण है कि हम सबसे पहले स्वयं को दोषी ठहराना बंद करें और सबसे पहले खुद को माफ करें। न किसी को दोष दें न स्वयं को दोषी मानें...किन्तु अगर इस भावुकता का उपयोग वोट डालते समय या देश कल्याण के कार्यों को लेकर की गई कोताही को नज़रअंदाज़ करते समय किया गया हो तो दोषी केवल और केवल आप ही होंगे, न तो वो वोटिंग मशीन दोषी
ऋतु कृष्णा चटर्जी/ Ritu Krishna Chatterjee