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Showing posts from August 17, 2014

निर्भया

उनसे मैं क्या कहती जो सबकुछ जानकर भूल किए ही जा रहे थे, लिहाज़ा खुद को ही संभालने का बीड़ा उठा लिया मैंने फिर देखा कि अचानक ही सबको मेरी फिक्र हो चली है सबको लगने लगा कि जीने लगी हूं मैं...उन्हें अफसोस होने लगा कि मैं किस तरह सांस ले सकती हूं कि मेरी सांसों की आवाज़ उन सब तक पहुंची जाती है जो मुझ जैसी ही हैं। मेरी सांसों की आवाज़ से उनमें जन्म लेने का साहस उमड़ रहा है, घर से निकल कर उत्साह से जीने की उ ... म्मीद जगने लगी है। डर कहीं पीछे छोड़ वो खुले आसमान में उड़ रही है... फिर मुझे थाम लिया किसी ने अचानक एक मज़बूत पकड़ मेरी बांह पर और मैं दर्द से तड़प उठी, किसी ने मेरी खुली सांसों को फिर से दर्द भरी कर्राह में बदल दिया था... मेरी छटपटाती दर्द भरी आवाज़ ने फिर सारी खनकती हंसी को शान्त कर दिया वो तमाम महीन सुरीली पतली आवाजें फुसफुसाहटों में बदल उठीं। एक खौफ का साया सा उन सब झिलमिलाहटों को बुझाने लगा। मुझे लगा कि हार मान कर मैं मेरी सारी परछाईयों को भी धुंधला कर रही हूं मैंने थोड़ी ताकत बटोरी अपने दबे गुस्से को बाहर आने का मौका दिया और उस कठोर पकड़ की मेरी बांह में धसीं उंगलियों को झटके से छुड़ाया औ