मनुष्य हंसना भूल गया है, हांलाकि इसका एहसास मुझे अतिरिक्त बुद्धि के श्राप से ग्रस्त एक व्यक्ति ने करवाया फिर भी उसको कोसना नही बनता। वास्तव में मुझे इस बात का प्रमाण मिला कि व्यक्ति खुश रहना ही नही चाहता, प्रेम, सद्भाव और आत्मीयता की भी उसे कोई आवश्यक्ता नही क्यूंकि वह जानता ही नही कि वह चाहता क्या है? जिस ओर उसे अपनी मानसिकता का एक प्रतिशत भी प्रभाव दिखता है वह उसी ओर लुढक जाता है, मतलब मर नही जाता बस थाली के बैंगन सा लुढ़क जाता है। हमारी समस्या यह है कि हम जानते भी नही और निर्णय भी नही कर सकते कि सही क्या है और ग़लत क्या? हम बस इतना जानते हैं कि जो हम मानते हैं बात वही है और अपनी सोच, दृष्टि एवं क्षमता के अनुसार प्रत्येक परिस्थिति को अपने अनुकूल बनाने का वरदान तो ईश्वर ने बिन मांगे ही हमें दिया है। बिल्कुल किसी कैद में पल रहे जीव की तरह जो बंधन को ही जीवन मान लेता है। कोई बुरा होता ही नही केवल उसके कर्म बुरे होते हैं और लोग भी एक के बाद एक पीढ़ी दर पीढ़ी कांग्रेस को ही कोसते आए हैं, असल में बुराई कांग्रेस या कांग्रेसियों में नही उनके कर्मांे में रही। ऐसे ही सपा, बसपा, भाजपा फिर कम
ऋतु कृष्णा चटर्जी/ Ritu Krishna Chatterjee