मैंने ईश्वर को नही देखा, मैंने भूत नही देखे, हवा नही देखी और तो और घण्टों योग-ध्यान के पश्चात् भी मुझे अपनी आत्मा के दर्शन नही हुए, दूसरे तो छोड़िए मैंने तो अपनी पृथ्वी को भी नही देखा कि वो गोल है या चैकोर? परन्तु मुझे विश्वास है कि ये सब हैं ही क्यूंकि बाकी लोग बड़े दावे के साथ ऐसी ही कहते हैं। मतलब वे अप्रत्यक्ष रूप से इस बात को भी स्वीकार कर रहे हैं कि यदि कोई वस्तु व्यक्ति या घटना आंखों देखी न हो तो इसका मतलब ये नही कि वो है नही या घटित नही हुई। गुस्सा दिखे नही तो अंदाज़ा न लगाईए कि है नही, खुशी दिखे नही तो भी मत सोच लीजिए कि है नही, दुःख, द्वेष, स्वार्थ और प्रेम का भी यही हाल है, भावनाएं दिखती नही पर होती हैं। इसके ठीक उलट भावुकता स्पष्ट दिखती है जबकि वास्तविकता में वो होती ही नही जो होती तो स्थिर होती, स्वार्थ दिखता नही पर होता है क्यूंकि स्वार्थ ही सहसा भावनाओं और भावुकता दोनों को खा जाता है। झूठ होता नही पर लोग मान लेते हैं, सत्य होता है पर लोग मानते नही। सीधी सी बात है कि उसकी बनाई दुनिया में जो है उसे अकसर हम समझते हैं कि नही है और जो नही है उसे कहते हैं कि है... अब इसमें
ऋतु कृष्णा चटर्जी/ Ritu Krishna Chatterjee