गृहयुद्ध की ओर बढ़ते इन कदमों को किसी न किसी उपाय से रोकना ही होगा, देश का प्रधान सेवक भी मौके की गंभीरता से अनभिज्ञ नही है किन्तु कोई तो कारण होगा ही कि फिलहाल चुप है। दाउद इब्राहीम की नई तस्वीर का मिलना और ज़किर नाईक का पकड़ा जाना कहीं न कहीं चुप रहने के पीछे कोई नई कहानी बुन रहा है। कैसी कहानी...? तेल की मजबूरी, तो कहीं न कहीं पाकिस्तान के साथ नर्मी बरतने की बात पर समझौता या फिर कुछ और ही चल रहा है उस दिमाग के भीतर? वोट देकर अफसोस करने वालों को कल एक बार फिर अपने अफसोस पर भी अफसोस होगा। युद्ध के नियमों से अपरिचित लोग भी अभी नही जानते कि युद्ध का हर नियम जायज़ ठहराने के पीछे भी कई राज़ छुपे थे। आप सीधा हमला भी करते थे, भूखा रख कर फिर भोजन का लालच दिखा कर काबू कर लेते थे, आप कभी यूं भी करते थे कि जो सहूलियत आपको आपका शासक नही दे सका उन्हीं चीज़ों को देने का वायदा करके भी आप किलों के बन्द दरवाज़े खुलवा कर जीत हासिल कर लेते थे। हर हाल में जनता ही होती थी जो सामने वाले का शिकार बनती थी, कभी हिन्दू मुग़लों का और कभी मुग़ल हिन्दुओं का! ऐसे ही किसी अदृश्य युद्ध का हम और आप शिकार बने हुए हैं, समय
ऋतु कृष्णा चटर्जी/ Ritu Krishna Chatterjee