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Showing posts from August 4, 2019

बंदूक अपने कंधों पर रख कर चलाना सीखिए...दूसरे के नही!

सही कहा मेरे एक फेसबुकिए मित्र ने कि ज़रूरत से ज़्यादा बेवकूफ और ज़रूरत से ज़्यादा समझदार लोगों में एक ही बुराई होती है, दोंनो ही किसी की नही सुनते। इधर खुद पर भी काफी हंसी आई जब लगातार एक मूर्ख को मैं धारा 370 के एक आलेख पर जवाब देती रही, मुझे एहसास हुआ कि मैं भी वही कर रही हूं जो ये मूर्ख कर रही है। उसने ध्यान से मेरे आलेख को पढ़ा ही नही था, उसे अपना सीमित ज्ञान हम सब तक पहुंचाना था और शायद इतना लिखना उसके बस में नही था तो उसने मुझे ही सीढ़ी बनाने की सोच ली। अचानक से आया किताबी और अधूरा ज्ञान कितना घातक होता है ये देख कर हंसी से ज़्यादा दहशत हुई, ऐसे ही अधूरे ज्ञान के साथ भारत की युवा पीढ़ी का भविष्य कहां जा रहा है??? इनकी भाषा और विरोध ने जाने अंजाने इन्हें देश के विरूद्ध कर दिया है, उम्र और युवावस्था की तेज़ी में भ्रष्ट बुद्धि के कुछ लोग आपको बिना समझे ही शिक्षा देने लगें तो एक बारगी तनिक कष्ट तो होता है फिर इन्हीं लोगों की बुद्धि और समझ पर दया भी आती है। उस बेचारी को जाने देते हैं क्यूंकि वो एक आधी अधूरी जानकारी और अतिरिक्त आत्मविश्वास का शिकार युवा थी, थोड़ा ऊपर उठ कर बात करते हैं क

वास्तव में 370 में सांस कांग्रेस की अटकी थी कश्मीर की नही

बस अब थोड़ा सावधान रहने की आवश्यक्ता है और कुछ नही, कारण भले ही कुछ लोगों ने अपने बच्चों के नाम रावण रख दिए हों परन्तु विभीषण नाम आज तक किसी मां-बाप ने अपने बच्चे के लिए नही चुना। ऐसे ही राज्यसभा के उन 61 वोटों को याद रखना होगा जो देश के विरूद्ध डाले गए। हमारे ही बीच ऐसे कौन लोग हैं जो देश को सम्पूर्ण रूप में नही देखना चाहते, और ऐसा है भी तो क्यूं? देश के टुकड़े होने से उन्हें क्या और कैसा लाभ मिल रहा है यदि केवल इस पर विचार करिएगा तो भी आपको उन देशद्रोहियों के नाम बगैर खोजे मिल जाएंगे। लगातार 70 वर्षों तक देश को आधा अधूरा बनाकर रखने के बाद आज देश को पूरा देखकर जिन्हें खुशी नही हो रही वो देश के सगे तो नही हो सकते अलबत्ता उन्हें अपने वोट बैंक में ज़रूर कुछ कमी महसूस हो रही होगी और सत्ता लोलुप जन्तुओं के लिए वोट का नुकसान सभी नुकसानों से बड़ा है, अन्यथा ये तथ्य वास्तव में सोच का विषय है कि केवल जम्मू कश्मीर के नेताओं के बच्चे ही वहां के स्थानीय स्कूलों में नही जाते सभी विदेशी स्कूलों में पढ़कर आए हैं या अभी भी पढ़ रहे हैं। कश्मीर की ग़रीबी वहां के आस पास के इलाकों का पिछड़ापन साफ नज़र आता