सरकार की स्थिति उस पिता जैसी है जो पहले दो बच्चों के लिए भरपूर कमाता था, आज भी उतना ही कमाता है पर अब उसके चार बच्चे आधा पेट खाकर ही सोते हैं। ऐसे तो 100 की जगह 1000 स्मार्ट सिटी भी हों तब भी बेरोजगारी का यही हाल रहने वाला है, कितने भी मेट्रो और बुलेट ट्रेनों की व्यवस्था की जाए सड़कों पर फ्लाईओवर बनते जाएं पर भीड़ की स्थिति जस की तस ही रहने वाली है। जब आय और साधन निश्चित मात्रा में हैं, तो भला किस अधिकार से हम नए जीवन को धरती पर लाकर उसके साथ अन्याय करते हैं। जनसंख्या नियंत्रण को हल्के में लेना कहीं सरकार को भारी न पड़ जाए। हर घड़ी बढ़ रही जनसंख्या सुरसा के मुख की भंति है, सरकार एक तरफ निश्चित संख्या के लिए संसाधन जुटाने में जुटी रहती है और दूसरी तरफ सीमित संसाधनों के उपयोग करने वालों की संख्या हर दो सेकेण्ड में बढ़ जाती है। ऐसे तो सरकार कभी भी जनता की आशाओं को पूरा नही कर पाएगी। आखि़र जनसंख्या नियंत्रण पर कठोर कानून बनाने में क्या समस्या है? इस प्रकार के कानून से एक गरीब परिवार से लेकर समस्त देश का भला ही होगा। प्रत्येक भारतीय नागरिक चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का हो उस पर यह कानून सख्त
ऋतु कृष्णा चटर्जी/ Ritu Krishna Chatterjee