जानवरों के पीछे पड़े इंसानों को देख कर मन में बड़ी अजीब भावनाएं उत्पन्न हो रही है , ऐसा महसूस हो रहा है कि अब दोनों के रहन-रहन और सोच में ज़्यादा फर्क नही रह जाएगा। वैसे भी सेक्स और बलात्कार के मामले में इंसान ने जानवर को बहुत पीछे छोड़ दिया है , बस थोड़ा खाने पीने और रहने पहनने भर का फर्क रह गया है वह भी पट जाएगा। आती जाती पीढ़ी का फटा-चिथड़ा पहनावा भी नंगेपन की नई परिभाषा को जन्म दे रहा है , लिहाज़ा कपड़ों का महत्व अब अधिक रह नही गया है , रही बात रहन सहन की उसमें भी लिव-इन रिलेशनशिप जानवरों से ही प्रभावित है। शादी-ब्याह का घटता महत्व आए दिन तलाक़ और पति-पत्नि के अलगाव से जुड़े मुद्दों की बढ़ती संख्या साफ इशारा दे रही हैं कि हमारी देशी संस्कृति किस ओर बह रही है और खाने-पीने की तो बात ही न कीजिएगा , जो घी रोटी पर लगा कर मां बचपन से जवानी तक मज़बूत शरीर तैयार करती रही अब उसका नाम ‘‘ हार्मफुल फैट ’’ हो गया है। लेकिन जानवर पैदा होने से लेकर मरने तक वही भोजन करता है जो उसने अपनी मां के साथ खाना सीखा , अब मान भी लीजिए कि जानवरों का सम्मान करना बनता है क्यूंकि वे आप और हमसे बेहतर हैं। उन्हें मार काट
ऋतु कृष्णा चटर्जी/ Ritu Krishna Chatterjee