कैसे सोच लिया जनता ने कि जाने वाली सरकार उनके लिए अपने कार्यालयों में मिठाई के डब्बे छोड़ जाएगी. जब नयी सरकार, पुरानी सरकार द्वारा पहले से तैयार बजट को सामने लेकर आई तो लगे शोर मचाने, ठीक ही कहा है किसी ने कि सबको एकसाथ खुश रख पाना बेहद मुश्किल या लगभग नामुमकिन होता है, और सबको खुश रखने की कोशिश में हम अपनी ज़िन्दगी की साड़ी खुशियों की बलि चढ़ा देते हैं. असल में कुछ लोग खुश रहना ही नहीं चाहते ऐसे में हम अनजाने में एक चक्र में फंसते चले जाते हैं जहाँ से मुक्ति ही नहीं मिलती, सारा समय हमारा ध्यान उसकी मुस्कराहट पे ही टिका रहता है की किसी भी तरह वो संतुष्टि चेहरे से बरसती रहे. लेकिन क्या किसीकी खुशियां और संतोष हमारे हाथ में हैं? ये तो प्रत्येक के निजकर्मों का ही प्रतिफल होता है, अच्छा है मोदी जी इन चक्करों से दूर हैं. उन्होंने देश की जनता को खुश रखने का काम चुनावों के तुरंत बाद ही बंद कर दिया और आम नागरिक को उसकी करनी के अनुसार फल प्राप्ति हेतु छोड़ दिया. जनता कल लगाए गए पेड़ से आज ही रसीले फल खाना चाहती है अब जनता ये बताये की पिछले १० सालों से जिस बबूल के पेड़ को सींच रही थी उसकी जड़ें उखाड़न
ऋतु कृष्णा चटर्जी/ Ritu Krishna Chatterjee