एक बार सूख कर खत्म हो चुके पेड़ से गिरे बीज को बोया गया, फिर जैसे ही अंकुर फूटा नया नया माली फल तोड़ने आ गया, फिर कुछ ने कहा कि तुम्हारे परिवार के दूसरे समझदार माली ऐसा कभी नही करते, थोड़ा सा और बढ़ने दो और लोग खा लेंगे, फिर भी जल्दी में अंकुर को ही खोद कर बड़े से गढ्ढे मे ंबो दिया गया। कुछ समय बाद पौधा बड़ा हुआ फिर से नया माली जो थोड़ा कम अक़्ल और कम अनुभवी था आ गया कि इस बार तो फल खाकर ही जाएंगे और फिर से कुछ ने कहा अरे थोड़ा और बढ़ने दो क ुछ औरों को भी मिलता रहेगा लिहाज़ा पौधे को उखाड़ कर खेत मे ंबो दिया गया, रोज़ रोज़ उसमें खाद पानी दिया जाने लगा, और फिर एक दिन अचानक हाट बाज़ार लगने की ख़बर आई तो हड़बड़ी में पौधे पर दवाई और रसायनों का छिड़काव कर उसे जल्दी से बड़ा करने की होड़ लग गई। समय से पहले बड़ा हुआ पौधा और उसके फल वैसे तो किसी काम के न थे पर उन पर तेल पाॅलिश लगा कर और कुछ ब्राण्ड वगैरह की चिपकियां चिपका कर बाज़ार में भेज दिया गया, कसैले अधपके फलों को कुछ मूर्ख पका जान कर खरीद भी ले गए पर ज़्यादातर ग्राहक सयाने निकले थोड़े दागी और गले ही सही पर चमक छोड़ कर देशी फल ही खरीदे। कच्चे फल वक़्त से पह
ऋतु कृष्णा चटर्जी/ Ritu Krishna Chatterjee