Skip to main content

अपने निर्णय का सम्मान कीजिये

कैसे सोच लिया जनता ने कि जाने वाली सरकार उनके लिए अपने कार्यालयों में मिठाई के डब्बे छोड़ जाएगी. जब नयी सरकार, पुरानी सरकार द्वारा पहले से तैयार बजट को सामने लेकर आई तो लगे शोर मचाने, ठीक ही कहा है किसी ने कि सबको एकसाथ खुश रख पाना बेहद मुश्किल या लगभग नामुमकिन होता है, और सबको खुश रखने की कोशिश में हम अपनी ज़िन्दगी की साड़ी खुशियों की बलि चढ़ा देते हैं. असल में कुछ लोग खुश रहना ही नहीं चाहते ऐसे में हम अनजाने में एक चक्र में फंसते चले जाते हैं जहाँ से मुक्ति ही नहीं मिलती, सारा समय हमारा ध्यान उसकी मुस्कराहट पे ही टिका रहता है की किसी भी तरह वो संतुष्टि चेहरे से बरसती रहे. लेकिन क्या किसीकी खुशियां और संतोष हमारे हाथ में हैं? ये तो प्रत्येक के निजकर्मों का ही प्रतिफल होता है, अच्छा है मोदी जी इन चक्करों से दूर हैं. उन्होंने देश की जनता को खुश रखने का काम चुनावों के तुरंत बाद ही बंद कर दिया और आम नागरिक को उसकी करनी के अनुसार फल प्राप्ति हेतु छोड़ दिया. जनता कल लगाए गए पेड़ से आज ही रसीले फल खाना चाहती है अब जनता ये बताये की पिछले १० सालों से जिस बबूल के पेड़ को सींच रही थी उसकी जड़ें उखाड़ने में क्या सिर्फ नयी सरकार को ही अपनी उंगलियां बिंधवानी पड़ेंगी? थोड़ा खून तो माली को भी बहाना ही होगा, एक अंग्रेजी कहावत है, "रोम वॉज़ नाट बिल्ट इन अ डे" ये सरकार है मित्रों कोई ३ घंटे की फिल्म नहीं जो रातों रात सुपर हिट हो जाये… थोड़ा धैर्य तो हमें भी धरना होगा, पिछले दो चुनावों में  वोटिंग मशीन के बटन दबाने में जो हाथ नहीं झिझके उन्हें उस जल्दबाज़ी का थोड़ा खामियाज़ा तो भरना होगा ना... ये तो संभव नहीं कि यंहा आपने नयी सरकार का चुनाव चिन्ह दबाया और वंहा आपके कष्टों का अंत हो गया, सरकार के साथ एटीएम मशीन जैसा बर्ताव नहीं कर सकते, १० साल के एवज में उन्हें १० महीने तो दो! इंसान की जीभ को प्रशंसा कहने में जितनी चेष्टा करनी पड़ती है, निंदा कहने में उतनी ही सरलता का अनुभव होता है. तो निंदा हेतु उन विरोधियों को छोड़ दीजिये जो स्वयं आपके लिए कुछ भी नहीं कर पाये और किसी को कुछ करने भी नहीं देना चाहते पछतावा तब करें जब कोई भूल हो जाए, पर अपने विश्वास पर पछताना तो कमज़ोर मन मस्तिष्क का परिचय देता है जो भारत देश की जनता के निर्णय का अपमान है और किसी का ना सही परन्तु अपने निर्णय का तो सम्मान कीजिए.

Comments

Popular posts from this blog

बंदूक अपने कंधों पर रख कर चलाना सीखिए...दूसरे के नही!

सही कहा मेरे एक फेसबुकिए मित्र ने कि ज़रूरत से ज़्यादा बेवकूफ और ज़रूरत से ज़्यादा समझदार लोगों में एक ही बुराई होती है, दोंनो ही किसी की नही सुनते। इधर खुद पर भी काफी हंसी आई जब लगातार एक मूर्ख को मैं धारा 370 के एक आलेख पर जवाब देती रही, मुझे एहसास हुआ कि मैं भी वही कर रही हूं जो ये मूर्ख कर रही है। उसने ध्यान से मेरे आलेख को पढ़ा ही नही था, उसे अपना सीमित ज्ञान हम सब तक पहुंचाना था और शायद इतना लिखना उसके बस में नही था तो उसने मुझे ही सीढ़ी बनाने की सोच ली। अचानक से आया किताबी और अधूरा ज्ञान कितना घातक होता है ये देख कर हंसी से ज़्यादा दहशत हुई, ऐसे ही अधूरे ज्ञान के साथ भारत की युवा पीढ़ी का भविष्य कहां जा रहा है??? इनकी भाषा और विरोध ने जाने अंजाने इन्हें देश के विरूद्ध कर दिया है, उम्र और युवावस्था की तेज़ी में भ्रष्ट बुद्धि के कुछ लोग आपको बिना समझे ही शिक्षा देने लगें तो एक बारगी तनिक कष्ट तो होता है फिर इन्हीं लोगों की बुद्धि और समझ पर दया भी आती है। उस बेचारी को जाने देते हैं क्यूंकि वो एक आधी अधूरी जानकारी और अतिरिक्त आत्मविश्वास का शिकार युवा थी, थोड़ा ऊपर उठ कर बात करते हैं क

शायद बलात्कार कुछ कम हो जाएँ...!

अब जब बियर बार खुल ही रहे हैं तो शायद बलात्कार कुछ कम हो जायेंगे, क्यूंकि बलात्कार करने का वक़्त ही  नहीं बचेगा...शाम होते ही शर्मीले नवयुवक बियर बार के अँधेरे में जाकर अपने ह्रदय की नयी उत्तेजना को थोड़ा कम कर लेंगे वहीँ वेह्शी दरिन्दे जिन्हें औरत की लत पड़ चुकी है, वो सस्ते में ही अपना पागलपन शांत कर सकेंगे. इसी बहाने देर रात आने जाने वाली मासूम बहनें शांतिपूर्वक सडकों पर आजा सकेंगी क्यूंकि सारे नरपिशाच तो बियर बारों में व्यस्त होंगे. पढ़के थोड़ा अजीब तो लगेगा पर ये उतना बुरा नहीं है जितना लगता है, कम से कम मासूम  और अनिच्छुक लड़कियों से जबरन सम्भोग करने वाले पिशाच अपनी गर्मी शांत करने के लिए उन औरतों का सहारा लेंगे जिनका घर ही इस वेश्यावृत्ति के काम से चलता है. उन औरतों को दूसरा काम देने और सुधरने की सोच काम नहीं आ सकेगी क्यूंकि उन्हें ये काम रास आने लगा है. मैंने काफी समय पहले २००५ में  जब बियर बार बंद करवा दिए गए थे तब इनमे से कुछ से बात भी की थी, वो अब आदत से मजबूर थीं और काम बंद हो जाने से बेहद परेशान लिहाज़ा उन सबने अपनी छोटी छोटी कोठरियों जैसे रिहाइशी स्थानों पर ही धंधा श

साक्षात्कार श्री अवैद्यनाथ जी सन् 2007 गोरक्षपीठ गोरखनाथ मंदिर गोरखपुर

प्रारंभिक दिनों में मेरे पत्रकारिता जीवन के प्रथम संपादक जिनका मार्गदर्शन मेरे पत्रकार को उभारने की कंुजी बना स्वर्गीय श्री विजयशंकर बाजपेयी संपादक विचार मीमांसा जो भोपाल से प्रकाशित हुआ करती थी और सन् 1996 में सर्वाधिक चर्चित एवं विवादित पत्रिकाओं में से एक रही। आज उनकी स्मृतियां मेरे हृदय के कोष में एकदम सुरक्षित है, उनके साथ व्यतीत हुए शिक्षापूर्ण क्षणों को भूल जाना मेरे लिए पत्रकारिता से सन्यास लेने के समान है। ऐसे अमूल्य गुणी एवं ज्ञानी व्यक्ति के मार्गदर्शन में तथा विचार मीमांसा के उत्तर प्रदेश ब्यूरो की प्रमुख के रूप में गोरखपुर मेरा उत्तर प्रदेश का पहला सुपुर्द नियत कार्य था, जहां मुझे गोरक्षनाथपीठ पर पूरा प्रतिवेदन तो लिखना ही था साथ ही महन्त स्वर्गीय श्री अवैद्यनाथ जी और योगी आदित्यनाथ के साक्षात्कार भी करने थे। किन्ही दुखःद कारणों एवं परिस्थितियांवश जिनकी चर्चा कर मैं विचार मीमांसा की अदभुत स्मृतियों का अपमान नही करना चाहती, यह कहानी विचार में तो प्रकाशित न हो सकी किन्तु अन्य कुछ एक पत्रिकाओं में इस विवादग्रस्त विषय को स्थान मिला, और श्री अवैद्यनाथ जी के देहत्यागने के सम