Skip to main content

निर्भया

उनसे मैं क्या कहती जो सबकुछ जानकर भूल किए ही जा रहे थे, लिहाज़ा खुद को ही संभालने का बीड़ा उठा लिया मैंने फिर देखा कि अचानक ही सबको मेरी फिक्र हो चली है सबको लगने लगा कि जीने लगी हूं मैं...उन्हें अफसोस होने लगा कि मैं किस तरह सांस ले सकती हूं कि मेरी सांसों की आवाज़ उन सब तक पहुंची जाती है जो मुझ जैसी ही हैं। मेरी सांसों की आवाज़ से उनमें जन्म लेने का साहस उमड़ रहा है, घर से निकल कर उत्साह से जीने की उ...म्मीद जगने लगी है। डर कहीं पीछे छोड़ वो खुले आसमान में उड़ रही है... फिर मुझे थाम लिया किसी ने अचानक एक मज़बूत पकड़ मेरी बांह पर और मैं दर्द से तड़प उठी, किसी ने मेरी खुली सांसों को फिर से दर्द भरी कर्राह में बदल दिया था... मेरी छटपटाती दर्द भरी आवाज़ ने फिर सारी खनकती हंसी को शान्त कर दिया वो तमाम महीन सुरीली पतली आवाजें फुसफुसाहटों में बदल उठीं। एक खौफ का साया सा उन सब झिलमिलाहटों को बुझाने लगा। मुझे लगा कि हार मान कर मैं मेरी सारी परछाईयों को भी धुंधला कर रही हूं मैंने थोड़ी ताकत बटोरी अपने दबे गुस्से को बाहर आने का मौका दिया और उस कठोर पकड़ की मेरी बांह में धसीं उंगलियों को झटके से छुड़ाया और कहा अब एक बार और मुझ पर अपनी परछाईं डालकर देखे... वो पकड़ वो कठोर उंगलियां वो कर्कश स्वर जैसे किसी मंच पर होने वाले नाटक के सूत्रधार के स्वर की भांति शून्य में पिघलता चला गया। मैं एक बार को सिसकी भरने चली पर अगले ही क्षण आत्म ने मुझसे पूछा क्यूं?
तेरी आंखों के नमकीन पानी ने ही तुझे पछाड़ रखा है, भावुकता मूर्खता ही नही पाप है अधर्म है, मुझे आत्म की भाषा फौरन समझ आ गई मैं हंसी खिलखिलाई और अचानक ही सैंकड़ों घंटियों सी उन्मुक्त सुरीली हंसने के स्वर और प्रसन्नता से भरे चहचहाते बतियाते पतली मीठी आवाज़ों के बीच मेरी आवाज़ भी खो गयी। वो फिर जी रही थी निर्भया क्यूकि मैंने जीना जो सीख लिया निर्भया बनकर...

Comments

Popular posts from this blog

बंदूक अपने कंधों पर रख कर चलाना सीखिए...दूसरे के नही!

सही कहा मेरे एक फेसबुकिए मित्र ने कि ज़रूरत से ज़्यादा बेवकूफ और ज़रूरत से ज़्यादा समझदार लोगों में एक ही बुराई होती है, दोंनो ही किसी की नही सुनते। इधर खुद पर भी काफी हंसी आई जब लगातार एक मूर्ख को मैं धारा 370 के एक आलेख पर जवाब देती रही, मुझे एहसास हुआ कि मैं भी वही कर रही हूं जो ये मूर्ख कर रही है। उसने ध्यान से मेरे आलेख को पढ़ा ही नही था, उसे अपना सीमित ज्ञान हम सब तक पहुंचाना था और शायद इतना लिखना उसके बस में नही था तो उसने मुझे ही सीढ़ी बनाने की सोच ली। अचानक से आया किताबी और अधूरा ज्ञान कितना घातक होता है ये देख कर हंसी से ज़्यादा दहशत हुई, ऐसे ही अधूरे ज्ञान के साथ भारत की युवा पीढ़ी का भविष्य कहां जा रहा है??? इनकी भाषा और विरोध ने जाने अंजाने इन्हें देश के विरूद्ध कर दिया है, उम्र और युवावस्था की तेज़ी में भ्रष्ट बुद्धि के कुछ लोग आपको बिना समझे ही शिक्षा देने लगें तो एक बारगी तनिक कष्ट तो होता है फिर इन्हीं लोगों की बुद्धि और समझ पर दया भी आती है। उस बेचारी को जाने देते हैं क्यूंकि वो एक आधी अधूरी जानकारी और अतिरिक्त आत्मविश्वास का शिकार युवा थी, थोड़ा ऊपर उठ कर बात करते हैं क...

बंदूक अपने कंधों पर रख कर चलाना सीखिए...दूसरे के नही!

सही कहा मेरे एक फेसबुकिए मित्र ने कि ज़रूरत से ज़्यादा बेवकूफ और ज़रूरत से ज़्यादा समझदार लोगों में एक ही बुराई होती है, दोंनो ही किसी की नही सुनते। इधर खुद पर भी काफी हंसी आई जब लगातार एक मूर्ख को मैं धारा 370 के एक आलेख पर जवाब देती रही, मुझे एहसास हुआ कि मैं भी वही कर रही हूं जो ये मूर्ख कर रही है। उसने ध्यान से मेरे आलेख को पढ़ा ही नही था, उसे अपना सीमित ज्ञान हम सब तक पहुंचाना था और शायद इतना लिखना उसके बस में नही था तो  उसने मुझे ही सीढ़ी बनाने की सोच ली। अचानक से आया किताबी और अधूरा ज्ञान कितना घातक होता है ये देख कर हंसी से ज़्यादा दहशत हुई, ऐसे ही अधूरे ज्ञान के साथ भारत की युवा पीढ़ी का भविष्य कहां जा रहा है??? इनकी भाषा और विरोध ने जाने अंजाने इन्हें देश के विरूद्ध कर दिया है, उम्र और युवावस्था की तेज़ी में भ्रष्ट बुद्धि के कुछ लोग आपको बिना समझे ही शिक्षा देने लगें तो एक बारगी तनिक कष्ट तो होता है फिर इन्हीं लोगों की बुद्धि और समझ पर दया भी आती है। उस बेचारी को जाने देते हैं क्यूंकि वो एक आधी अधूरी जानकारी और अतिरिक्त आत्मविश्वास का शिकार युवा थी, थोड़ा ऊपर उठ कर बात कर...

शायद बलात्कार कुछ कम हो जाएँ...!

अब जब बियर बार खुल ही रहे हैं तो शायद बलात्कार कुछ कम हो जायेंगे, क्यूंकि बलात्कार करने का वक़्त ही  नहीं बचेगा...शाम होते ही शर्मीले नवयुवक बियर बार के अँधेरे में जाकर अपने ह्रदय की नयी उत्तेजना को थोड़ा कम कर लेंगे वहीँ वेह्शी दरिन्दे जिन्हें औरत की लत पड़ चुकी है, वो सस्ते में ही अपना पागलपन शांत कर सकेंगे. इसी बहाने देर रात आने जाने वाली मासूम बहनें शांतिपूर्वक सडकों पर आजा सकेंगी क्यूंकि सारे नरपिशाच तो बियर बारों में व्यस्त होंगे. पढ़के थोड़ा अजीब तो लगेगा पर ये उतना बुरा नहीं है जितना लगता है, कम से कम मासूम  और अनिच्छुक लड़कियों से जबरन सम्भोग करने वाले पिशाच अपनी गर्मी शांत करने के लिए उन औरतों का सहारा लेंगे जिनका घर ही इस वेश्यावृत्ति के काम से चलता है. उन औरतों को दूसरा काम देने और सुधरने की सोच काम नहीं आ सकेगी क्यूंकि उन्हें ये काम रास आने लगा है. मैंने काफी समय पहले २००५ में  जब बियर बार बंद करवा दिए गए थे तब इनमे से कुछ से बात भी की थी, वो अब आदत से मजबूर थीं और काम बंद हो जाने से बेहद परेशान लिहाज़ा उन सबने अपनी छोटी छोटी कोठरियों जैसे रिहाइशी स्थानो...