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उन्हें ये जिद कि मुझे देखकर किसी को न देख...मेरा ये शौक कि सबसे कलाम करता चलूं

आप का कष्ट आपका ही रह गया, कोई दर्द बांटने भी नही आता अब, उल्टे वो हैं कि बेरहमी से चेहरा फेर कर चल दिए। एक मोदी एक शाह बाकी सब बिन टोपी बिन राह... गुजरात में तो बस धोती ही खींची गई थी यहां तो मफलर उतना भी नही छुपा पाएगा। कुमार विश्वास का ज़ख़्म भरने के बजाए दर्द के मारे ऐसा रिसा कि नासूर बनकर कविता की पंक्तियों की स्याही बन बैठा, और आधुनिक कवियों का हाल देखिए ! इको फ्रेन्डली कवि हैं, कागज़ नही बरबाद करते वरन 2-4 लाईनों की प्रेरणा मिलते ही ट्वीट कर देते हैं जिससे बाकी की कविता हम स्वयं ही पूरी कर लें और जो समझ आए समझ लें। किरण बेदी की बेरूख़ी की वजह क्या हो सकती है, बैठ कर आपको ही सोचना होगा, सारी ज़िन्दगी तिहाड़ छाप कैदियों से उकता कर वो संभवतः एक बार फिर वहीं के लोगों में दोबारा न बैठना चाहती हों। आखि़र कहीं तो धरने से फुरसत मिलनी ही चाहिए। वैसे गुजरातियों को पतंग उड़ाना वास्तव में बहुत ज़्यादा पसंद है और कटी पतंगों को लूटना उससे ज़्यादा पसंद है ये तो उन्होंने साबित कर दिया। महात्मा गांधी, सरदार वल्लभ भाई पटेल छीन लिए कांग्रेस से, यहां झाड़ू और बेदी के बार शाज़िया भी जा रही है। आखि़र कोई क्यूं और किसलिए आपको वोट दे, सस्ती बिजली, पानी और सुरक्षा के लिए या खांसी की दवा सस्ती करने के लिए। क्या दिल्ली का राजधानी वाला रूतबा और ख़ूबसूरती की किसी को ज़रूरत नही रही। क्या आम आदमी अपने शहर को अपना गर्व नही मानना चाहता, दिल्ली तो देश का गर्व है क्या एक बार को ये नही लगता कि पिछले 49 दिवसीय कार्टून शो को देखने के बाद अब तनिक डिस्कवरी चैनल देखकर समझदारी का सबूत देना बनता है और वैसे भी हम भारतीयों को प्रयोग करने की पुरानी आदत है, घड़ी-घड़ी जुगाड़ भिड़ा कर नई चीज़े खोजते रहते है हम लोग...अगर ऐसा नही होता तो उत्तर प्रदेश में बसपा और दिल्ली में आपकी सरकार कैसे बनती भला, तो भाई लोग मज़ाक बहुत हुआ अब गंभीरता से काम लिया जाए। आपका गुस्सा तो ठण्डा होने से रहा, वो तो उस पत्नी की तरह है जो पति को घोड़े का मुखौटा 
पहना कर सिर्फ एक तरफ देखता हुआ देखना चाहती है और पति उस छुट्टे सांड सा है जो राह चलते हर आदमी से मुस्कुराता बोलता चलता है। अब ऐसे में बीवी का गुस्सा जायज़ है, आपके लिए अन्ना हजारे के हज़ारों और फिलहाल सारी दिल्ली आपके उसी काल्पनिक अधिकार क्षेत्र में है, एक थप्पड़ थोड़ी स्याही, एक आध जूता तो पति का हक़ है कि गुस्सा आने पर चला दे, इससे बीवी को गुरेज़ नही, पर छोड़ के सौतन की गोद में जा बैठे ये सहा नही जाता। आप भूल गए कि अन्ना का चेहरा ही सब तमाशे का पर्दा था, पर्दा नही तो फिल्म को मफलर पर नही चला सकते। किरण बेदी की बेरूख़ी तो दिल के अरमां ही आंसुओं में बहा ले गई, ये था मोदी का 20-20 स्टाईल चुनावी खेल और आपके लिए अभी पूरी टेस्ट सिरीज़ सामने पड़ी है। मेरी मानिए चंदा इकठ्ठा कीजिए अगले लोकसभा के लिए जब झापड़, जूते और स्याही से बचने के लिए कम से कम एक बड़ी गाड़ी तो किराए पर उठाई जा सकेगी क्यूंकि इस बार आपकी सरकार गलती से दिल्ली बैठ भी गई तो 50वें दिन तक दिल्ली वालों के पास पहले से मौजूद स्वच्छता अभियान वाली झाड़ूओं की मार नही सह सकेंगे, भूखा रह कर अनशन पर लेटना आसान है पर पिटाई के बाद धरने पर सीधा बैठना बड़ा मुश्किल...बहरहाल चुनावों के लिए सबको शुभकामनाएं एवं सद्बुद्धि की कामना और आपके लिए हृदयान्तर से सहानुभूति!!!

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