Skip to main content

...क्यूंकि उसको मुझसे प्यार है



अभी कल ही तो मिला था, फिर पता नही कहां गया? मुझे समझ नही आता जब उन्हे इतनी जल्दी होती है तो वो आते ही क्यूं हैं! बेकार का ताम झाम, तैयारी बैठकी, लो वो आया और ये लो जैसे ही बैठने चले वो चल दिए। गुस्सा तो कई बार आता है लेकिन उस पर बिगड़ कर आगे मिलने का मौका मैं खोना नही चाहती। उसके बिना तो सारे काम ही रूक जाते हैं मेरे...दूसरों के पास भी जाना आना है उसका, पर मुझे बुरा नही लगता हां कभी कभी ऐसा ज़रूर लगता है कि वो पहले और ज़रा देर तक सिर्फ मेरे पास ही ठहरे। पहले बहुत कम आता था वो, शायद मैं उसको अहमियत कम देती थी तो वो देर तक मुझे सताता रहता था, सुकून से एक मन से कोई काम करने ही नही देता। अब इंतज़ार करती हूं तो साहब भाव ही नही देता। ये सब तो पुरानी रीत है, जबतक पीछे भागो कोई पूछता नही और मुंह फेर लो तो पीछा होने लगता है।
उस दिन देर तक उसकी राह देखती रही, घण्टों आंखें खोले छत की ओर ताकते हुए वक़्त बीता, फिर बेवजह टेलीविज़न खुला रहा, मैं बैठी रही कुछ भी नही देखा, थोड़ी नमकीन चबाई, थोड़ी चाय भी पी ली, काली चाय हल्की मीठी चुस्की ले लेकर उसके आने की आहट सुनने का प्रयास करती रही। अचानक सोचा दूसरों को भी तो उसकी ज़रूरत पड़ती है कितने ही हाथ कलम उठाकर उसकी प्रतीक्षा में शून्य ताकते रहते हैं। इतना सोच कर लैपटॉप बन्द ही किया होगा कि वो आ गया, इतने लम्बे समय बाद उसके आने से जैसे रेगिस्तान में बारिश हो गई, इस बार तो हद ही कर दी थी उसने पूरे साल के बाद आया था, चंट! मुझे बिल्कुल गुस्सा नही था बल्कि उसका मैंने ऐसा स्वागत किया कि इस बार एक दिन भी शून्य में न बीते, दिमाग़ में लगी जं़ग खुरचने जैसी आवाज़ महसूस हो रही थी। इस बार वो पहले की तरह ही रह रह कर मन का, हृदय का, मस्तिष्क का हर दरवाज़ा खटखटा रहा था--- उसकी एक बात मुझे और भी ज़्यादा पास ले आती है कि वो कभी मुझे हाथ थाम कर नही उठाता क्यूंकि वो मुझे छूता ही नही पर फिर भी सम्मोहित सा करके मुझे बैठकी तक ले आता है जो घर की ऊपरी मंज़िल का हिस्सा है। कई बार तो वहां तक जाने की बात कह कर वो दुष्ट आधे रस्ते से ही गायब हो जाता था। वो आता था जब मैं एकदम एकांत में होऊं, पर अब तो भीड़ में भी अजीब अजीब तरीकों से मेरे आस पास भटकता रहता है। उसके लिए अब मैं आयु में भी थोड़ी बड़ी हो चुकी हूं, कम उम्र में वो कई बार सारे दरवाजे़ खटखटा के भाग जाता था, शायद उसको लगता था कि मेरी स्कूल की पढ़ाई का हर्जा हो जाएगा या उसको लगता होगा कि अभी मेरी आंखों ने इतनी ताकत नही बटोरी कि उसको देख सकें। सच ही तो है उसे देखने के लिए भी आंखों में हसरतों की चमक होनी ही चाहिए वरना बड़ी धुंधली सी छवि मात्र उभरती है उसकी; वो उस दिन काफी देरी से कमरे के दरवाज़े तक आया थोड़ी जल्दी में था शायद लेकिन उस रोज़ किसी से बड़ा झगड़ा हो गया था मेरा, तो आंखें चाह कर भी उसको देखने के लिए नही उठीं, बहुत बुरा लगा था उसको इतना बुरा कि अगले डेढ़ महीने तक एक मामूली झलक भी नही दिखाई मुझको, पर जब इस बार वो आया तो सबसे पहले सिर्फ अपने ही बारे में सारी बातें कर गया मुझसे बोला मैं तो बहुतों के बारे में लिखवाता हूं कभी कोई मेरे बारे में भी तो लिखे...ये कुछ ऐसा ही हो जाता है कि मरीज़ों को दुरूस्त करने वाले डॉक्टर को खांसता देख कर भी कोई हाल चाल नही पूछता। मुझसे रहा न गया तो उसकी मेरी इस हसीन मुलाका़त को ही क़ाग़ज़ पे दर्ज करने का मन बना लिया मैंने, जो भी हो मुझ जैसे कलम के गु़लाम को उसका हर पल इंतज़ार रहता है, उसकी सिर्फ एक झलक मात्र के लिए हर कलमकार मेरी ही तरह टकटकी बांधे घण्टों शून्य में बिता देता होगा शायद...अब तक तो आ जाना चाहिए था उसको पता नही ये विचार इतनी कठिनाई से क्यूं आते हैं? एक दम मेहमान बनकर फिर चल देते हैं जैसे किसी ने इनसे बैठने को न कहा हो। आप ज़रा गा़ैर से देखिएगा वो आपसे मिलने को आप ही के आस पास मण्डराता होगा कहीं न कहीं...मुलाक़ात हो जाए तो मेरा प्यार दीजिएगा उसको, क्यूंकि उसको मुझसे प्यार है।

Comments

Popular posts from this blog

बंदूक अपने कंधों पर रख कर चलाना सीखिए...दूसरे के नही!

सही कहा मेरे एक फेसबुकिए मित्र ने कि ज़रूरत से ज़्यादा बेवकूफ और ज़रूरत से ज़्यादा समझदार लोगों में एक ही बुराई होती है, दोंनो ही किसी की नही सुनते। इधर खुद पर भी काफी हंसी आई जब लगातार एक मूर्ख को मैं धारा 370 के एक आलेख पर जवाब देती रही, मुझे एहसास हुआ कि मैं भी वही कर रही हूं जो ये मूर्ख कर रही है। उसने ध्यान से मेरे आलेख को पढ़ा ही नही था, उसे अपना सीमित ज्ञान हम सब तक पहुंचाना था और शायद इतना लिखना उसके बस में नही था तो उसने मुझे ही सीढ़ी बनाने की सोच ली। अचानक से आया किताबी और अधूरा ज्ञान कितना घातक होता है ये देख कर हंसी से ज़्यादा दहशत हुई, ऐसे ही अधूरे ज्ञान के साथ भारत की युवा पीढ़ी का भविष्य कहां जा रहा है??? इनकी भाषा और विरोध ने जाने अंजाने इन्हें देश के विरूद्ध कर दिया है, उम्र और युवावस्था की तेज़ी में भ्रष्ट बुद्धि के कुछ लोग आपको बिना समझे ही शिक्षा देने लगें तो एक बारगी तनिक कष्ट तो होता है फिर इन्हीं लोगों की बुद्धि और समझ पर दया भी आती है। उस बेचारी को जाने देते हैं क्यूंकि वो एक आधी अधूरी जानकारी और अतिरिक्त आत्मविश्वास का शिकार युवा थी, थोड़ा ऊपर उठ कर बात करते हैं क

शायद बलात्कार कुछ कम हो जाएँ...!

अब जब बियर बार खुल ही रहे हैं तो शायद बलात्कार कुछ कम हो जायेंगे, क्यूंकि बलात्कार करने का वक़्त ही  नहीं बचेगा...शाम होते ही शर्मीले नवयुवक बियर बार के अँधेरे में जाकर अपने ह्रदय की नयी उत्तेजना को थोड़ा कम कर लेंगे वहीँ वेह्शी दरिन्दे जिन्हें औरत की लत पड़ चुकी है, वो सस्ते में ही अपना पागलपन शांत कर सकेंगे. इसी बहाने देर रात आने जाने वाली मासूम बहनें शांतिपूर्वक सडकों पर आजा सकेंगी क्यूंकि सारे नरपिशाच तो बियर बारों में व्यस्त होंगे. पढ़के थोड़ा अजीब तो लगेगा पर ये उतना बुरा नहीं है जितना लगता है, कम से कम मासूम  और अनिच्छुक लड़कियों से जबरन सम्भोग करने वाले पिशाच अपनी गर्मी शांत करने के लिए उन औरतों का सहारा लेंगे जिनका घर ही इस वेश्यावृत्ति के काम से चलता है. उन औरतों को दूसरा काम देने और सुधरने की सोच काम नहीं आ सकेगी क्यूंकि उन्हें ये काम रास आने लगा है. मैंने काफी समय पहले २००५ में  जब बियर बार बंद करवा दिए गए थे तब इनमे से कुछ से बात भी की थी, वो अब आदत से मजबूर थीं और काम बंद हो जाने से बेहद परेशान लिहाज़ा उन सबने अपनी छोटी छोटी कोठरियों जैसे रिहाइशी स्थानों पर ही धंधा श

साक्षात्कार श्री अवैद्यनाथ जी सन् 2007 गोरक्षपीठ गोरखनाथ मंदिर गोरखपुर

प्रारंभिक दिनों में मेरे पत्रकारिता जीवन के प्रथम संपादक जिनका मार्गदर्शन मेरे पत्रकार को उभारने की कंुजी बना स्वर्गीय श्री विजयशंकर बाजपेयी संपादक विचार मीमांसा जो भोपाल से प्रकाशित हुआ करती थी और सन् 1996 में सर्वाधिक चर्चित एवं विवादित पत्रिकाओं में से एक रही। आज उनकी स्मृतियां मेरे हृदय के कोष में एकदम सुरक्षित है, उनके साथ व्यतीत हुए शिक्षापूर्ण क्षणों को भूल जाना मेरे लिए पत्रकारिता से सन्यास लेने के समान है। ऐसे अमूल्य गुणी एवं ज्ञानी व्यक्ति के मार्गदर्शन में तथा विचार मीमांसा के उत्तर प्रदेश ब्यूरो की प्रमुख के रूप में गोरखपुर मेरा उत्तर प्रदेश का पहला सुपुर्द नियत कार्य था, जहां मुझे गोरक्षनाथपीठ पर पूरा प्रतिवेदन तो लिखना ही था साथ ही महन्त स्वर्गीय श्री अवैद्यनाथ जी और योगी आदित्यनाथ के साक्षात्कार भी करने थे। किन्ही दुखःद कारणों एवं परिस्थितियांवश जिनकी चर्चा कर मैं विचार मीमांसा की अदभुत स्मृतियों का अपमान नही करना चाहती, यह कहानी विचार में तो प्रकाशित न हो सकी किन्तु अन्य कुछ एक पत्रिकाओं में इस विवादग्रस्त विषय को स्थान मिला, और श्री अवैद्यनाथ जी के देहत्यागने के सम