भावुक व्यक्ति और उसके विचार दोनों ही बेहद घातक होते हैं, यहां तक के भावुक व्यक्ति या भावुकता भरे विचार दोनों ही एक समान भयंकर परिणाम देने वाले होते हैं। क्षणिक प्रेम, लगाव या सहृदयता भी भावुकता की देन है। भावनाओं का सम्मान करना चाहिए किन्तु भावुकता का तिरस्कार भी उतना ही महत्वपूर्ण है। दोनों के बीच के आकाश पाताल समान अंतर को समझना चाहिए, जो समझ गए वो पार उतर गए और जो भंवर में उलझे डूब गए पर मरे नही वरन उन्हें भी खींच कर साथ ले गए जो उनके आस पास थे, वो कहावत तो है ही कि ‘‘हम तो डूबेंगे सनम, तुमको भी...’’
बहरहाल बसे बसाए घर कार्य और जीवन का सत्यानाश करने का 80 प्रतिशत श्रेय भावुकता को दे देना चाहिए। इससे आपको खु़द को क्षमा करने में विशेष सहायता मिलेगी और यही तो सबसे महत्वपूर्ण है कि हम सबसे पहले स्वयं को दोषी ठहराना बंद करें और सबसे पहले खुद को माफ करें। न किसी को दोष दें न स्वयं को दोषी मानें...किन्तु अगर इस भावुकता का उपयोग वोट डालते समय या देश कल्याण के कार्यों को लेकर की गई कोताही को नज़रअंदाज़ करते समय किया गया हो तो दोषी केवल और केवल आप ही होंगे, न तो वो वोटिंग मशीन दोषी होगी , न पोल अफसर, न बूथ कार्यकर्ता और न ही आपकी मतदाता लाईन में आपके पीछे लगा खिन्न मन का वह व्यक्ति जो किन्ही कारणों से सदैव सत्ता और सरकार से नाराज़ ही रहता है। हांलाकि उसकी नाराज़गी देश की सत्ता से कम और अपनी पत्नी की सत्ता से अधिक होती है तिस पर भी उसका क्रोध पत्नी पर कम सरकार पर अधिक निकलता है। लगातार सरकार और उसके कार्यों को कोसने के बाद अचानक वोटिंग मशीन के एकदम निकट जाकर वह कहता है, स्स्स्ससा...ले हैं बड़े... लेकिन वोट इन्हीं को देना ठीक है दूसरे वालों ने पिछली बार बूथ तक आने लायक नही छोड़ा था। लेकिन तक तब उसकी भावुकता भरी गालियों और बड़-बड़ के जाल में फंस कर आपका दृढ़ निश्चय तबाह हो चुका होता है तो बेहतर है कि कान में रूई ठूंस कर जाईए और वही कीजिए जो भावनाएं कहती हों। भावुकता के चक्कर में इह लोक पर लोक दोनों गंवा बैठेंगे और हाथ में आएगी वही पुरानी घड़ी जिसमें इस बार आप सेल डलाना भूल गए थे और जिसके डायल में रूका हुआ समय वही भावुकताओं से भरे पलों को दोहराएगा जब आप भावनाओं को टटोलने से चूक गए थे।
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