वो जो कल तक साथ थे आज खिलाफ हो गए, जिन्हें राजनीति का 'र' नही आता वो देश
चलाने के तरीके पर राय बरसा रहे हैं। जो भाजपा को देश तोड़ने की राजनीति करने वाली
पार्टी कह रहे थे वे आज मुसलमानों के उद्धार और उत्थान की बात पर तड़प रहे हैं। अभी
तो सिर्फ सबका विश्वास जीतने की बात हुई और अभी से ही सबके साथ विश्वासघात भी हो
गया। तकलीफ तब होनी चाहिए जब अपने घर से छीन कर किसी दूसरे को मिल रहा हो, यहां तो सिर्फ उन्हें वो दिया जा रहा है जिसे वो कभी
पा ही नही सके और दूसरों को भी नही दिया गया ये कह कर कि ये किसी की अमानत है और
इसी डायलॉग के साथ 70 वर्ष तक सिर्फ
विश्वास और विश्वासघात का खेल होता रहा, कभी अपने साथ कभी उनके साथ, दोनों के हिस्से की रोटी छोटी होती गई पर कांग्रेस का
तराजू कभी बराबर न हो सका। बराबर होता भी तो कैसे ? देश की उन्नित के नाम पर बार बार, हर एक भारतीय के अधिकार से टुकड़े काट काट कर वो अपना
पार्टी फण्ड भरते रहे जिससे चुनावों के खर्चे भी जनता की ही जेब से पूरे हो जाएं
और जो बचे वो स्विस खातों की शोभा बढ़ाएं।
असल में जनता स्वयं ही नही जानती कि उसे शिकायत करनी किससे
है? बस बेमकसद सी नाराज़ प्रेमिका सी जनता ज़रा ज़रा से
मामले पर मुंह फुला कर बैठ जाती है, वो जिन्हें देश की डोर दी है तनिक उस पर भी कुछ काम
छोड़ दो। एक वोट तुम्हारा सही ग़लत का निर्णय दे चुका है अब जिसे वोट दिया है बाकी
काम उसे कर लेने दो। कोई भी आज तक पांच से ज़्यादा न टिका हो ऐसा नही हुआ। 15 साल कांग्रेस को बर्दाश्त करने वाले लोग आज मोदी
सरकार के छठें साल में ही बलबला क्यूं रहे हैं? कम से कम मोदी कांग्रेस की यादों को मन से मिटने तो
नही दे रहे, ये एहसान क्या कम
है? थोड़े में और एक से ही दोनों सुखी भाजपाई भी कांग्रेसी
भी, वैसे भी ले देकर इन चुनावों के बाद बस दो ही
पार्टियां दिखती हैं। भले ही सीटें जीतने के नाम पर दोनों में भारी दूरी है फिर भी
हैं दोनों ही आमने सामने बिल्कुल पहले की ही तरह।
वो काम करेंगे और वो करने से रोकेंगे, वो उन्हीं के रोके और छोड़े काम करेंगे और वे उस काम
का विरोध करेंगे बिना जाने कि ये उन्हीं के राज में अधूरा रखा गया काम था।
मुसलमानों के लिए उनके भले और उन्नित के लिए अगर कांग्रेस ने कदम उठाए होते तो आज
विपक्ष काफी मज़बूत होता, पर हिन्दू वोटों
के कटने के डर से कांग्रेस ने स्पष्ट कर दिया कि मुसलमानों का उत्थान कांग्रेस की
जिम्मेदारी नही है, अगर वे स्वयं
अपनी उन्नित नही चाहते तो उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया जाए। बस मोदी जैसे फटे में
टांग डालने वाले व्यक्ति को अब रोके कौन ? वोट तो आपने ही दिया था अब दिए वोट का मान रखिए और
उनके हर फैसले के पीछे छुपे उद्देश्य को समझने का प्रयास कीजिए। उन्हें पसंद है
फटे में टांग डालना, खासकर कि जब वो
फटा कांग्रेस का हो।
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