सही कहा मेरे एक फेसबुकिए मित्र ने कि ज़रूरत से ज़्यादा बेवकूफ और ज़रूरत से ज़्यादा समझदार लोगों में एक ही बुराई होती है, दोंनो ही किसी की नही सुनते। इधर खुद पर भी काफी हंसी आई जब लगातार एक मूर्ख को मैं धारा 370 के एक आलेख पर जवाब देती रही, मुझे एहसास हुआ कि मैं भी वही कर रही हूं जो ये मूर्ख कर रही है। उसने ध्यान से मेरे आलेख को पढ़ा ही नही था, उसे अपना सीमित ज्ञान हम सब तक पहुंचाना था और शायद इतना लिखना उसके बस में नही था तो उसने मुझे ही सीढ़ी बनाने की सोच ली। अचानक से आया किताबी और अधूरा ज्ञान कितना घातक होता है ये देख कर हंसी से ज़्यादा दहशत हुई, ऐसे ही अधूरे ज्ञान के साथ भारत की युवा पीढ़ी का भविष्य कहां जा रहा है??? इनकी भाषा और विरोध ने जाने अंजाने इन्हें देश के विरूद्ध कर दिया है, उम्र और युवावस्था की तेज़ी में भ्रष्ट बुद्धि के कुछ लोग आपको बिना समझे ही शिक्षा देने लगें तो एक बारगी तनिक कष्ट तो होता है फिर इन्हीं लोगों की बुद्धि और समझ पर दया भी आती है।
उस बेचारी को जाने देते हैं क्यूंकि वो एक आधी अधूरी जानकारी और अतिरिक्त आत्मविश्वास का शिकार युवा थी, थोड़ा ऊपर उठ कर बात करते हैं कि ऐसा एक बार नही हज़ारों बार हुआ जब इस लोकमंच पर लिखे आलेखों को पूरी तरह पढ़े समझे बिना ही कुछ पढ़े लिखे मूर्ख और कुछ स्वघोषित बुद्धिजीवियों ने निशाना बना लिया। खुलेआम जो अपशब्द कहने में उनकी महानता की पोल खुल जाती वो निजी संदेश में धमका कर भी दिए, संभवतः उन्हें अपनी असफलता से निराशा महसूस हुई होगी कि जो उन्हें पहले समझना चाहिए था वो समझने में इतना समय कैसे लग गया।
कुल मिला कर संतुलन दोंनो ही परिस्थितियों में नही था, मैं भी जवाबी कार्यवाही में कुछ त्रुटियां कर बैठी, पहला तो मुझे इन्हें इनके प्रश्नों के साथ अधूरा छोड़ देना चाहिए था, दूसरे इनके द्वारा किए जा रहे अपमान को भी किसी नासमझ बच्चे का हठ या उछल कूद समझ कर नज़रअंदाज़ कर देना था। लेकिन मैं ऐसा न करके इन्हें जवाब देकर अपनी लेखनी का अपमान करती रही उसके लिए मैं क्षमा प्रार्थी हूं। मेरे लिखे आलेख मेंरी नितांत व्यक्तिगत विचार धारा है आप सहमत हैं या नही पढ़ कर तय कीजिए किन्तु अपषब्दों और अपमान से दूर रहना सीखिए। ऐसा सभी के साथ है किसी की बात आपको अच्छी लगती है और किसी की नही, इसके लिए आवश्यक नही कि उसे अपमानित करके व्यक्तिगत शत्रु मान लिया जाए। लोकमंच है ऐसे देश का जहां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है और इस स्वतंत्रता के दुरपयोग की भी पूरी गुंजाईश है, आप स्वतंत्र देश के स्वतंत्र नागरिक हैं ऐसा कीजिए मगर, बंदूक अपने कंधों पर रख कर चलाना सीखिए...दूसरे के नही!
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