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ये लेख कदापि राजनीतिक नही है


ऐसा नही है कि मुझे शिकायतें नही, लेकिन शिकायत करने से पहले अपने कर्मों का हिसाब करना भी तो ज़रूरी है। कहां तक गरूण पुराण के पढ़े जाने की प्रतीक्षा करते रहिएगा, कुछ काम स्वयं भी तो कीजिए...फौरन पता लग जाता है कि आपके साथ हो रहा ग़लत, असल में स्वयं आपकी ही देन है।
अब इसका संबंद्ध सत्ताधारी या विपक्षियों से जोड़कर मेरे लेख को राजनीतिक बनाने का कष्ट मत करिएगा। कहने का तात्पर्य एकदम सरल है, उदाहरण के लिए मान लीजिए कोरोना के समय जगह-जगह जाकर खरीददारी कीजिएगा और बिना सुरक्षा के मटरगश्ती करिएगा तो मृत्यु द्वार आपके और आपके अपनों के लिए बिना प्रयास ही खुल जाऐंगे और इसके लिए न मोदी, न राहुल गांधी और न ही केजरीवाल कोई भी ज़िम्मेदार नही होगा। आप न तो संबित पात्रा और न ही सुरजेवाल किसी से भी व्यथा नही कह सकेंगे, योगी जी भी घास नही डालेंगे और अखिलेश भी आपको या आपके रोते सिर को कंधा देने नही आएंगे। फिर आपस में एक दूसरे को चिकोटी काट कर हम आप असल में अपने ही शरीर पर लाल काले दाग काट रहे हैं। मज़ा तो तब आएगा जब चिकोटी हम आपकी काटें और हम पर केस सुब्रह्यणयम् स्वामी कर दें।
जीभ गरमाने भर का प्रपंच बहुत सुहाता है, वहीं पर बुद्धि भ्रष्ट करने वाले विवाद समय संबंद्ध और जीवन सब नरक कर देते हैं। बीमारियों से लड़ने के लिए मन मस्तिष्क की सेहत का दुरूस्त रहना भी बेहद आवश्यक है बल्कि मन मज़बूत हो तो आप सालों तक बीमारी का मुंह नही देखेंगे इस बात का मैं खुलकर दावा करती हूं, फिर भले ही आप एक आध महीने थोड़ा कम हिलिए डुलिए। जो अच्छा लगे बस वही कीजिए बस शिकायत मत कीजिए। उलटे जो समस्याएं आपने स्वयं उत्पन्न की हैं उनको सुलझाने का प्रयत्न करके देखिए, इन दिनों तो आपके पास समय ही समय है।
राजस्थान में कांग्रेस भाजपा की समस्या सुलझा कर आप अपनी और अपने बच्चों की समस्या का समाधान नही कर सकेंगे और न तो चीन को भारत पर हमला करने से रोक सकेंगे, न ही योगी जी के जातिवादी स्वभाव को बदल सकेंगे। फिर ऐसा क्या है जो इन दिनों में बदल सकेगा, संभवतः हमारे व्यसनों पर लगाम लग सकेगी। निर्मला सीतारमण आपको तवज्जो दें न दें घर का बजट पुनः विचाराधीन हो सकेगा।
आप सीएए का विरोध कर रहे असंतुष्ट बु़िद्धहीन गुणीजनों से बात करने नही जा सके लेकिन जिन रिश्तेदारों से मिलने का समय अब नही रहा और पहले भी कभी नही था उनसे फोन पर मुफ्त बातचीत...कहने का तात्पर्य जीओ टू जीओ बात करके मामलों को सामान्य किया जा सकता है।
माधव राव सिंधिया, राहुल गांधी से दोस्ती भले ही नही निभा सके किन्तु आप पुराने दोस्तों को भी खोजिए क्या पता जीवित हों न हों...बुरा मानने की क्या बात है, वो भूले बिसरे दोस्त भी आपके बारे में ऐसा ही सोचते हैं।
भले ही राम मन्दिर के भूमिपूजन में आपको न बुलाया जाए किन्तु आस पड़ोस के घर में हो रहे रूद्राभिषेक में एक बार आपको आमंत्रित करने के बारे में अवश्य विचार किया जाता है।
क्या मन को स्वस्थ्य रखने के लिए यह कम है?

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