बिना बात भला पिछली बार कब छुट्टी मिली थी, इस बार भी इस छुट्टी को लाईन में खड़े रह कर बर्बाद मत होने देना। ऐसा नहीं करोगे तो फिर से देश में घोटाले कैसे होंगे, घोटाले बंद हो गए तो सुबह की चाय के साथ अखबार में क्या पढोगे? कैसे मेहेंगाई बढ़ेगी, कैसे भ्रष्टाचार बढ़ेगा, ये माँ-बेटे भाई-बहन का क्या होगा? जीजाजी की रोटी कैसे चलेगी. कैसे बाक़ी बचा देश लुटेगा । ज़रा सोचिये इन काली स्याही के कारोबारियों का क्या होगा जो सुबह सुबह आपको चाय के साथ दिमाग के लिए नाश्ता परोसते हैं. आधा दर्जन अखबार तो इन्ही डाकुओं की सत्ता के बल पर चल रहे हैं … इनकी शान में क़सीदे पढ़ने वाले कुछ उन अखबारों और पत्रिकाओं का भी ख़याल करिये, हमे तो मनोरंजन से मतलब है अब वो चाहे कैसे भी किया जा सके. ख़बरें क्यों पढ़ते हैं हम? सोचा है कभी? ७०% लोग ख़बरें नहीं पढ़ते, वो ख़बरों में भी मनोरंजन ढूंढते हैं. खासतौर पे बलात्कार वाली ख़बरें जिन्हे हम तकरीबन १० बार पढ़ते हैं क्यों पढ़ते हैं ये तो आप ही जाने… हत्या की खबर जो दिन भर का मसाला बनता है क्यों बार बार पढ़ते हैं ये भी आप ही जाने? पर देश को लूटने वाले आगे क्या क्या और लूट सकते हैं इस बारे में पढ़ना आपको बोर करता है, हांलाकि इस सबसे आप भी अछूते नहीं रह पाते फिर भी आप दिमाग नहीं पकाना चाहते। … ये कह कर तसल्ली कर लेते हैं की यार कोई भी हो सरकार ऐसे ही चलता रहेगा अपना कारोबार, सही है कारोबार तो चलता रहेगा पर ये स्वार्थीपन क्या आपको आपके अपनों से अपने देश से देशवासियों से एकदम अलग नहीं खड़ा कर देता. ऐसा नहीं महसूस होने लगता जैसे की आप कोई गद्दार हों जिसे देश समाज या अपनों की कोई फ़िक्र नहीं हो. वोट ना देना भी देशद्रोह ही है. कत्लेआम, दंगा फसाद, गाली गलौज, सिस्टम पे गुस्सा, ये सब किसी भी समस्या का हल नही. वोट ही है सीधा जवाब शांतिपूर्वक क्रान्ति लाने का सुअवसर. जब ये अवसर मिलता है आप छुट्टी मनाने चले जाते हैं. पार्टी करते हैं, फिर परिस्थितियां विपरीत होने पर सरकार को दो चार गाली देते हैं जिससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। अगर आप भी देश का हिस्सा हैं तो जाकर वोट कीजिये,और जिन्हे आप देश नहीं सौंपना चाहते उनसे देश बचा लीजिये. शायद कोई बहोत बड़ा बदलाव ना आये पर कम से कम तसल्लi तो हो जाएगी कि आगे कुछ बहोत बुरा भी नहीं होगा.
सही कहा मेरे एक फेसबुकिए मित्र ने कि ज़रूरत से ज़्यादा बेवकूफ और ज़रूरत से ज़्यादा समझदार लोगों में एक ही बुराई होती है, दोंनो ही किसी की नही सुनते। इधर खुद पर भी काफी हंसी आई जब लगातार एक मूर्ख को मैं धारा 370 के एक आलेख पर जवाब देती रही, मुझे एहसास हुआ कि मैं भी वही कर रही हूं जो ये मूर्ख कर रही है। उसने ध्यान से मेरे आलेख को पढ़ा ही नही था, उसे अपना सीमित ज्ञान हम सब तक पहुंचाना था और शायद इतना लिखना उसके बस में नही था तो उसने मुझे ही सीढ़ी बनाने की सोच ली। अचानक से आया किताबी और अधूरा ज्ञान कितना घातक होता है ये देख कर हंसी से ज़्यादा दहशत हुई, ऐसे ही अधूरे ज्ञान के साथ भारत की युवा पीढ़ी का भविष्य कहां जा रहा है??? इनकी भाषा और विरोध ने जाने अंजाने इन्हें देश के विरूद्ध कर दिया है, उम्र और युवावस्था की तेज़ी में भ्रष्ट बुद्धि के कुछ लोग आपको बिना समझे ही शिक्षा देने लगें तो एक बारगी तनिक कष्ट तो होता है फिर इन्हीं लोगों की बुद्धि और समझ पर दया भी आती है। उस बेचारी को जाने देते हैं क्यूंकि वो एक आधी अधूरी जानकारी और अतिरिक्त आत्मविश्वास का शिकार युवा थी, थोड़ा ऊपर उठ कर बात करते हैं क
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