मतदाताओं की लम्बी कतार ने इस बार के मुकाबले का
नतीजा लगभग बता ही दिया है. कड़ा जवाब मिलेगा इस वोट की चोट से, बीते १० साल बर्दाश्त की सीमा पार कर चुकी जनता ने पोलिंग बूथ के बहार अपनी
संख्या से ही साबित कर दिया की जो देश के सगे नहीं उनका स्वागत करने को हम तैयार
नहीं है. तेज़ धूप
भी किसी के मार्ग में बाधा नहीं है. हाथ में पानी की
बोतलें और सर पे तौलिये ढँक कर खड़े लोग किसी क्रांतिकारी सेना का हिस्सा लग रहे
हैं, इन्हे देख कर स्वयं को देश का हिस्सा कहने पर अद्भुत
सुख और संतोष की अनुभूति हो रही है. वोट डालते ही एक ज़िम्मेदार और महत्त्वपूर्ण
देशभक्त हूँ ऐसा लगने लगता है. औरतें घर में नहीं बैठी हैं बल्कि सदल-बदल निकली
हैं ये बताने की अब ५०% वोट उनके हैं ४९% नही... जिनके नाम लिस्ट में नहीं हैं वो गुस्से में हैं विरोध कर रहे
हैं बता रहे हैं की इस बार वोट नहीं डाला तो देश का कितना बड़ा नुक्सान हो सकता है, पहली बार के युवा वोटर अपने साथ दूसरे लोगों के नाम
की पर्चियां ढून्ढ कर दे रहे हैं की कोई वोट छूटने ना पाये। शायद ऐसे ही देश के
इसी तरह के चुनाव की कामना की गयी थी. ये चुनावी धूम किसी जनक्रांति से कम ना आंका
जाए, इस बात का ध्यान रखना ही होगा, हर देशवासी वोट की शक्ति समझ चुका है और 16 से 17 मई तक राजनीती के ठेकेदार भी समझ जायेंगे कि वोट
से लगने वाली चोट के निशान अब अगले ५ साल तक टीस देते
रहेंगे।
मतदाताओं की लम्बी कतार ने इस बार के मुकाबले का
नतीजा लगभग बता ही दिया है. कड़ा जवाब मिलेगा इस वोट की चोट से, बीते १० साल बर्दाश्त की सीमा पार कर चुकी जनता ने पोलिंग बूथ के बहार अपनी
संख्या से ही साबित कर दिया की जो देश के सगे नहीं उनका स्वागत करने को हम तैयार
नहीं है. तेज़ धूप
भी किसी के मार्ग में बाधा नहीं है. हाथ में पानी की
बोतलें और सर पे तौलिये ढँक कर खड़े लोग किसी क्रांतिकारी सेना का हिस्सा लग रहे
हैं, इन्हे देख कर स्वयं को देश का हिस्सा कहने पर अद्भुत
सुख और संतोष की अनुभूति हो रही है. वोट डालते ही एक ज़िम्मेदार और महत्त्वपूर्ण
देशभक्त हूँ ऐसा लगने लगता है. औरतें घर में नहीं बैठी हैं बल्कि सदल-बदल निकली
हैं ये बताने की अब ५०% वोट उनके हैं ४९% नही... जिनके नाम लिस्ट में नहीं हैं वो गुस्से में हैं विरोध कर रहे
हैं बता रहे हैं की इस बार वोट नहीं डाला तो देश का कितना बड़ा नुक्सान हो सकता है, पहली बार के युवा वोटर अपने साथ दूसरे लोगों के नाम
की पर्चियां ढून्ढ कर दे रहे हैं की कोई वोट छूटने ना पाये। शायद ऐसे ही देश के
इसी तरह के चुनाव की कामना की गयी थी. ये चुनावी धूम किसी जनक्रांति से कम ना आंका
जाए, इस बात का ध्यान रखना ही होगा, हर देशवासी वोट की शक्ति समझ चुका है और 16 से 17 मई तक राजनीती के ठेकेदार भी समझ जायेंगे कि वोट
से लगने वाली चोट के निशान अब अगले ५ साल तक टीस देते
रहेंगे।
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