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यहां केवल भूमिपूजन की बात हो रही है


भूमि पूजन कितना मनोरम शब्द, लगभग हर उस व्यक्ति के लिए जिसने अनगिनत अथक प्रयास और श्रम के पश्चात अपना खु़द का एक बसेरा बसाने की दिशा में सफलता का पहला कदम रखा हो। भीतपूजा, नींव की पहली ईंट और भी असंख्य शब्द हैं जिनका उपयोग इस शुभकार्य के पहले किया जाता है। जिस प्रकार विवाह के आयोजन से पूर्व अनगिनत असंतुष्टियां और विघ्न बाधाओं को पराजित करते हुए बेटी के पिता को अंततः कन्यादान करके सहस्त्रों पुण्यों को एक बार में फल प्राप्त हो जाता है वैसे ही अपने और आने वाली सात पीढ़ियों के सिर पर छत देकर भूमि पूजने वाले पुरूष के भी दोनों लोक सफल हो जाते हैं। घर कितना बड़ा होगा इसका निर्णय प्रथमतः किया जाना कठिन होता है, क्यूंकि आरंभ में रहने वाले कभी दो तो कभी आठ हो सकते हैं किन्तु समय के साथ और ईश्वर की कृपा से हर आकार प्रकार के मकान में अनगिनत लोग समा जाते हैं, रहते हैं, जीवन बिताते हैं, फिर इसी प्रकार उनके बाद की पीढ़ी भी उसी में सहजता से समा जाती है।
समस्या घर की छोटाई बड़ाई नही बल्कि समस्या जो सामने आती है वह यह कि भूमिपूजन में किस किस को और कितनों को बुलाएं? जिन्हें बुलाएंगे वो पूरी तरह शान्त और संतुष्ट होंगे या नही और जिनको नही बुलाएंगे वे हमें कितना कोसेंगे? बस यही सोच कर सभी से कह भर देना हमारा कर्तव्य है। अब कोई आए या न आए ये उसकी इच्छा...
फिर भी लाख छंटाई से बचने के बाद भी एक आध ऐसे नाम निकल आते हैं जो आपके और आपसे जुड़े कई लोगों के बरदाश्त के बाहर होते हैं और अंततः आपको उन्हें अपनी सूची से किनारे करना ही पड़ता है। कभी कभी ये कदम हम अपने मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए करते हैं तो कभी कभी सामाजिक स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए हमें ऐसे कदम उठाने ही पड़ते हैं। हांलाकि इसके बाद भी हम कौन सा निन्दा से बच जाते हैं, बस इतना हो जाता है कि शुभ कार्य के समय अपशकुन जैसी बातें और ज़हरीले कटाक्षों से कुछ समय की राहत मिल जाती है।
यदि इसमें तनिक भी सच्चाई है जो कि है तो आप सबको एक बार इस संबंद्ध में विचार करना चाहिए, कलेश उत्पन्न करने वाले मित्र से तो झूठी शुभकामनाएं देने वाला शत्रु अच्छा।

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