16 जुलाई काण्ड का अपराधी राम सेवक यादव पकड़ा गया, पुराना मुजरिम था और कत्ल, धोखा-धड़ी उसके लिए कोई नई बात नही है। अगर इस बार प्रदेश पर जबरन शासन कर रही सरकार उसे बचाने में कामयाब हो जाती है तो आने वाले कई सालों तक उसका जीवन इन्हीं कार्यों द्वारा आराम से चलता रहेगा। सिर्फ रामसेवक यादव ही क्यूं और भी सभी बलात्कारी नरपिशाचों का जीवन भी आराम से कट रहा है। आखिर... इन सबको उनके पिता मुलायम सिंह यादव का संरक्षण जो प्राप्त है और फिर ऐसा भी क्या हो गया? मामूली बलात्कार की चेष्टा और हत्या ही तो हुई है कोई बड़ी बात नही लड़के हैं, गलती हो जाती है। ये औरतें आखिर इतनी महत्वपूर्ण तो नही है कि इनके पीछे पुरूष अपने शौक त्याग दे।
स्त्री को तो बनाया ही गया है मनोरंजन हेतु, संभवतः आजकल नारी इस बात को स्वीकार चुकी है इसलिए स्वयं को तमाशा बनाकर परोसने में उसे मज़ा भी आने लगा है भले ही इसकी कीमत उसे अपने सम्मान या रक्त से चुकानी पड़े। स्वतंत्र देश के स्वतंत्र नागरिक और भी अधिक स्वतंत्र हो जाना चाहते है, एकदम आदम युग के स्त्री-पुरूष सा...जहां केवल संभोग ही स्त्री-पुरूष संबंधों की परिणति था। पुरूष संभोग चाहता है और स्त्रीयां संभोग का पात्र बनना चाहती हैं, ठीक ही कहा था अंग्रेज़ों ने कि ये लोग अभी इस योग्य नही कि अपनी स्वतंत्रता को संभाल सकें, इन्हें छूट दी तो पता नही अपना और इस देश का क्रूा हाल करेेंगे। उनके इस कथन की सच्चाई आज सामने है। पुरूषों ने खुले आम जो जी चाहे और जैसे चाहे जीवन जीने को अपना पुरूषार्थ मान लिया है और स्त्रियों ने जबरन आपनी स्वतंत्रता को दिखाने जताने की ज़िद को अपना अस्तित्व मान लिया है, छोटे कपड़े, मर्दों के समान खुलेआम अयाशी, बेवजह घर से बाहर भटकने और सड़कों पर जहां तहां अपनी प्रदर्शनी लगा कर खड़े रहना इससे स्त्री के किस प्रकार के अहं को संतुष्टि मिलती है ये समझ के बाहर है। बिना वजह अपनी स्वतंत्रता का सार्वजनिक प्रदर्शन कर रहीं महिलाएं ये क्यूं नही समझना चाहती कि समाज में चरित्रहीन पुरूष को एक वेश्या से भी अधिक घृणित दृष्टि से देखा जाता है। जो भी पुरूष ऐसा सोचते हैं कि कई संबंध बनाकर या जहां तहां औरतों को हवस पूरी करने करने की चेष्टा से पा लेने की सोच उनका पुरूषत्व सिद्ध करती है वो असल में स्वयं को समाज के लिए गन्दगी की श्रेणी में ला पटकते हैं। देखा जाए तो इस प्रकार के स्त्री पुरूष किसी भी प्रकार से समाज को स्वीकार नही होते फिर किस प्रकार दोनों में कोई छोटा या बड़ा हो सकता है। इस स्त्री स्वतंत्रता और पुरूष दमित समाज की बहस को यहीं छोड़ कर तनिक विचार करें, किस प्रकार के वातावरण में जन्म लेता है बलात्कारी, ऐसी कौन सी मानसिक बीमारी होती है जो उसे मनुष्य से पिशाच बना देती है। इस पर तो संभवतः कोई भी विचार नही करना चाहता, उल्टे ऐसे कारण और दलीलें खोजता है जिनका ऐसे कृत्यों से कोई भी लेना देना नही होता। बलात्कार के लिए किसे किस प्रकार का दोष दिया जाए जब ये समझ नही आता तो कभी मोबाईल फोन, जीन्स, देर रात की नौकरी तो कभी विवाह पूर्व के प्रेमसंबंधों को इसका कारण बनाकर तसल्ली कर ली जाती है। एक बात बताईऐ क्या जीन्स से ज्यादा साड़ी उत्तेजित नही करती, स्त्री का स्त्रित्व पुरूष को आकर्षित करता है न कि स्त्री का मर्दानापन, फिर जीन्स किस प्रकार बलात्कार करवाती है जिसे पहनने और उतारने में ही पसीने छूट जाते हैं। जब मन में ही कमजोरी हो तो फिर क्या जीन्स क्या साड़ी, क्या मां-बहन-बेटी जो आंखें हर औरत का शरीर नग्न ही देखती हो उसे तो देवी की प्रतिमा भी संभोग का ही विचार देगी। मन की नीचता और विकारों, कुसंस्कारों और घटिया पालनपोषण पर सस्ते बहानों का पर्दा ढांकने से बलात्कार नही रूकेंगे और सारे देश की पुलिस - सेना भी इसे नही रोक सकती, इस मानसिकता का इलाज घर में ही है क्यूंकि ये बीमारी हमें घर से ही मिलती है तो इलाज भी आप और हम ही कर सकेंगे। वो लड़का जो अपने माता पिता की सेवा, बहन की रक्षा और पत्नी का सम्मान करता है वो हमारे घरों से ही पला बढ़ा होता है और वो लड़का जो पड़ोस की लड़की से छेड़छाड़ में पिटता है, दोस्तों के साथ मिल पत्नी का बलात्कार करता है, या आफिस अथवा आस पास की महिल का अपहरण बलात्कार हत्या आदि करता है वो भी तो हम जैसे परिवारों से ही समाज में निकलता है, वो लड़की जो मां-बाप का कहना मानती है, घर के कामों में हाथ बंटाती है, भाई को बताकर घर से निकलती है, समय पर घर लौटती है वो भी हमारे घर की होती है और वो लड़की जो दिन दोपहर पार्कों में छुपकर शराब-सिगरेट का नशा करती है, पढ़ाई के बहाने अपने प्रेमी के साथ रंगरेलियां मनाने जाती है और घर छोड़ कर किसी के साथ भाग जाती है वो भी हम जैसे परिवारों से ही आती है, तो अन्तर आता कहां से है? अब इसका उत्तर भी इसी आलेख में ढूंढेंगे तो आप स्वयं क्या करेंगे जाईए अपने बच्चों की हो रही परवरिश को एक बार पुनः जांचिए कि गलती कहां पर हो रही है?
स्त्री को तो बनाया ही गया है मनोरंजन हेतु, संभवतः आजकल नारी इस बात को स्वीकार चुकी है इसलिए स्वयं को तमाशा बनाकर परोसने में उसे मज़ा भी आने लगा है भले ही इसकी कीमत उसे अपने सम्मान या रक्त से चुकानी पड़े। स्वतंत्र देश के स्वतंत्र नागरिक और भी अधिक स्वतंत्र हो जाना चाहते है, एकदम आदम युग के स्त्री-पुरूष सा...जहां केवल संभोग ही स्त्री-पुरूष संबंधों की परिणति था। पुरूष संभोग चाहता है और स्त्रीयां संभोग का पात्र बनना चाहती हैं, ठीक ही कहा था अंग्रेज़ों ने कि ये लोग अभी इस योग्य नही कि अपनी स्वतंत्रता को संभाल सकें, इन्हें छूट दी तो पता नही अपना और इस देश का क्रूा हाल करेेंगे। उनके इस कथन की सच्चाई आज सामने है। पुरूषों ने खुले आम जो जी चाहे और जैसे चाहे जीवन जीने को अपना पुरूषार्थ मान लिया है और स्त्रियों ने जबरन आपनी स्वतंत्रता को दिखाने जताने की ज़िद को अपना अस्तित्व मान लिया है, छोटे कपड़े, मर्दों के समान खुलेआम अयाशी, बेवजह घर से बाहर भटकने और सड़कों पर जहां तहां अपनी प्रदर्शनी लगा कर खड़े रहना इससे स्त्री के किस प्रकार के अहं को संतुष्टि मिलती है ये समझ के बाहर है। बिना वजह अपनी स्वतंत्रता का सार्वजनिक प्रदर्शन कर रहीं महिलाएं ये क्यूं नही समझना चाहती कि समाज में चरित्रहीन पुरूष को एक वेश्या से भी अधिक घृणित दृष्टि से देखा जाता है। जो भी पुरूष ऐसा सोचते हैं कि कई संबंध बनाकर या जहां तहां औरतों को हवस पूरी करने करने की चेष्टा से पा लेने की सोच उनका पुरूषत्व सिद्ध करती है वो असल में स्वयं को समाज के लिए गन्दगी की श्रेणी में ला पटकते हैं। देखा जाए तो इस प्रकार के स्त्री पुरूष किसी भी प्रकार से समाज को स्वीकार नही होते फिर किस प्रकार दोनों में कोई छोटा या बड़ा हो सकता है। इस स्त्री स्वतंत्रता और पुरूष दमित समाज की बहस को यहीं छोड़ कर तनिक विचार करें, किस प्रकार के वातावरण में जन्म लेता है बलात्कारी, ऐसी कौन सी मानसिक बीमारी होती है जो उसे मनुष्य से पिशाच बना देती है। इस पर तो संभवतः कोई भी विचार नही करना चाहता, उल्टे ऐसे कारण और दलीलें खोजता है जिनका ऐसे कृत्यों से कोई भी लेना देना नही होता। बलात्कार के लिए किसे किस प्रकार का दोष दिया जाए जब ये समझ नही आता तो कभी मोबाईल फोन, जीन्स, देर रात की नौकरी तो कभी विवाह पूर्व के प्रेमसंबंधों को इसका कारण बनाकर तसल्ली कर ली जाती है। एक बात बताईऐ क्या जीन्स से ज्यादा साड़ी उत्तेजित नही करती, स्त्री का स्त्रित्व पुरूष को आकर्षित करता है न कि स्त्री का मर्दानापन, फिर जीन्स किस प्रकार बलात्कार करवाती है जिसे पहनने और उतारने में ही पसीने छूट जाते हैं। जब मन में ही कमजोरी हो तो फिर क्या जीन्स क्या साड़ी, क्या मां-बहन-बेटी जो आंखें हर औरत का शरीर नग्न ही देखती हो उसे तो देवी की प्रतिमा भी संभोग का ही विचार देगी। मन की नीचता और विकारों, कुसंस्कारों और घटिया पालनपोषण पर सस्ते बहानों का पर्दा ढांकने से बलात्कार नही रूकेंगे और सारे देश की पुलिस - सेना भी इसे नही रोक सकती, इस मानसिकता का इलाज घर में ही है क्यूंकि ये बीमारी हमें घर से ही मिलती है तो इलाज भी आप और हम ही कर सकेंगे। वो लड़का जो अपने माता पिता की सेवा, बहन की रक्षा और पत्नी का सम्मान करता है वो हमारे घरों से ही पला बढ़ा होता है और वो लड़का जो पड़ोस की लड़की से छेड़छाड़ में पिटता है, दोस्तों के साथ मिल पत्नी का बलात्कार करता है, या आफिस अथवा आस पास की महिल का अपहरण बलात्कार हत्या आदि करता है वो भी तो हम जैसे परिवारों से ही समाज में निकलता है, वो लड़की जो मां-बाप का कहना मानती है, घर के कामों में हाथ बंटाती है, भाई को बताकर घर से निकलती है, समय पर घर लौटती है वो भी हमारे घर की होती है और वो लड़की जो दिन दोपहर पार्कों में छुपकर शराब-सिगरेट का नशा करती है, पढ़ाई के बहाने अपने प्रेमी के साथ रंगरेलियां मनाने जाती है और घर छोड़ कर किसी के साथ भाग जाती है वो भी हम जैसे परिवारों से ही आती है, तो अन्तर आता कहां से है? अब इसका उत्तर भी इसी आलेख में ढूंढेंगे तो आप स्वयं क्या करेंगे जाईए अपने बच्चों की हो रही परवरिश को एक बार पुनः जांचिए कि गलती कहां पर हो रही है?
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