एक बुलेट ट्रेन का सपना ही मिल जाए तो इसमें क्या बुराई है. इसके पहले भी तो १९८७ में एक बुलेट ट्रेन मिल रही थी ये और बात है की १९८७ में चली ट्रेन २०१४ तक भी भारत की रेल लाइन तक नहीं पहुँच पाई. जब बची खुची कांग्रेस के प्रवक्ता मीम अफजल साहब से इसकी वजह पूछने की कोशिश की गयी तो जवाब मिला की देश की आर्थिक स्थिति की चादर इतनी छोटी है कि उस समय सरकार की पैर फैलाने की ...हिम्मत नही पड़ी। लेकिन चादर तो अभी भी उतनी ही बड़ी है बस सरकार ने उम्मीद बड़ी कर दी है कि आज नही तो कल हम विकासशील से विकसित होने वाले हैं।
कहीं ऐसा तो नही कि बीते वर्षों में चादर को बड़ा होने ही नही दिया गया, और क्यूं नही बोफोर्स, 2जी, कोलगेट, जैसे हाईप्रोफाईल घोटालों ने देश की ऐसी कमर तोड़ी कि 21वीं सदी की देहलीज़ पे खड़ा मेरा देश एक बार फिर 19वीं सदी में अपनी चादर को नापने लगा। ‘‘ग़रीब को ग़रीब ही बनाए रखो तभी राज कायम रहेगा’’ की नीति पर सालों साल शासन कर रही कांग्रेस को इससे सरल मार्ग नही दिख रहा था बल्कि और कोई रास्ता था ही नही शायद...67 साल तक सारा देश उनसे उम्मीदें लगाए बैठा रहा और वो केवल राज कायम रखने के रास्ते ढूंढते रहे। एक बार हिम्मत कर के भलाई और समाज सेवा की भावना से कोई कदम तो उठाते कम से कम कहने को ही होता कि कांग्रेस के राज में जनहित और देश के विकास का एक बड़ा फैसला लिया गया था।
कुछ न कर पाने की खीज और हार की कुढ़न का प्रदर्शन देखिए कि नए रेलमंत्री के नाम पर ही चढ़ खड़े हुए कांग्रेसी। चलिए भाजपा सरकार महीने डेढ़ महीने कुछ नही कर पाई पर कम से कम यूपीए सरकार द्वारा लुटे खज़ाने को तो भरने का सोच रही है। चलो 60,000 करोड़ की बुलेट ट्रेन तुरन्त न सही पर कम से कम उम्मीद तो बंधी कि देश की चादर आज नही तो कल अब बड़ी तो होगीे। जिसे हर साल घोटालों की कैंची से कुतर कर उतना ही बड़ा रखा जाता था जितने में जनता को मूर्ख बनाने की कहानियां सुनाई जा सकें कि जब केन्द्र के खज़ाने में साधारण विकास कार्यों के लिए ही पर्याप्त धन नही तो इससे आगे की सोच का सवाल नही उठता। सच भी यही है स्विस बैंकों में भरा धन माफ कीजिएगा काला धन भला कौन सा कांग्रेसी दानवीर वापस लाकर सरकारी खज़ाने में डालता।
दूध का धुला तो कोई भी नही है अब हाल ही में बिहार के भाजपा नेता गिरीराज के यहां चोरी हुई और हाईप्रोफाईल मामले के कारण पता नही कैसे पुलिस ने 3 दिन के अन्दर चोरों को पकड़ लिया। बरामद हुए 1 करोड़ 22 लाख से ज़्यादा के अमेरिकन डाॅलर, भारतीय करेंसी में कैश, ज्वैलरी अब थोड़ा सोचिए कि इतना पैसा नेता जी के घर से बरामद हुआ है यदि इनका बैंक एकाउंट और संभवतः सिवस बैंक का खाता भी जांच लिया जाए तो बहुत ज़्यादा न सही पर बुलेट ट्रेन की दो-चार बोगियां तो बन ही जाएंगी। बहरहाल मैं तो प्रधानमंत्री प्रिय मोदी महोदय का ध्यान थोड़ा इस ओर आकर्षित करने का प्रयत्न कर रही थी कि देश की मजबूर जनता से फल-सब्जियों, पेट्रोल, गैस और ट्रेन टिकट पर 100-200 रूपए का लोड बढ़ा कर भी इतना पैसा नही जमा हो सकेगा कि बुलेट ट्रेन देश में दौड़ सके इसका सीधा रास्ता है सभी नेताओं का गला दबाकर उनसे पूछा जाए के उनके टायलेट में लगे एसी का बिल कहां से भरा जा रहा है कहने का मकसद ये कि यदि 1 अरब जनता को छोड़ केवल वर्तमान और पूर्व सांसदों के घर से चिल्लर बटोरे जाएं तो 2-4 बुलेट ट्रेन तो एक साल में ही देश में चलने लगें। मेरी बात को हल्के में न लें ज़रा सोच कर देखें जनता खुश सरकारी खज़ना फुल और आगामी चुनावों के लिए और भी ईमानदार छवि का प्रदर्शन हो जाएगा... कहने का तात्पर्य कि हींग लगे न फिटकरी रंग होगा चोखा ... मतलब केसरिया।
कहीं ऐसा तो नही कि बीते वर्षों में चादर को बड़ा होने ही नही दिया गया, और क्यूं नही बोफोर्स, 2जी, कोलगेट, जैसे हाईप्रोफाईल घोटालों ने देश की ऐसी कमर तोड़ी कि 21वीं सदी की देहलीज़ पे खड़ा मेरा देश एक बार फिर 19वीं सदी में अपनी चादर को नापने लगा। ‘‘ग़रीब को ग़रीब ही बनाए रखो तभी राज कायम रहेगा’’ की नीति पर सालों साल शासन कर रही कांग्रेस को इससे सरल मार्ग नही दिख रहा था बल्कि और कोई रास्ता था ही नही शायद...67 साल तक सारा देश उनसे उम्मीदें लगाए बैठा रहा और वो केवल राज कायम रखने के रास्ते ढूंढते रहे। एक बार हिम्मत कर के भलाई और समाज सेवा की भावना से कोई कदम तो उठाते कम से कम कहने को ही होता कि कांग्रेस के राज में जनहित और देश के विकास का एक बड़ा फैसला लिया गया था।
कुछ न कर पाने की खीज और हार की कुढ़न का प्रदर्शन देखिए कि नए रेलमंत्री के नाम पर ही चढ़ खड़े हुए कांग्रेसी। चलिए भाजपा सरकार महीने डेढ़ महीने कुछ नही कर पाई पर कम से कम यूपीए सरकार द्वारा लुटे खज़ाने को तो भरने का सोच रही है। चलो 60,000 करोड़ की बुलेट ट्रेन तुरन्त न सही पर कम से कम उम्मीद तो बंधी कि देश की चादर आज नही तो कल अब बड़ी तो होगीे। जिसे हर साल घोटालों की कैंची से कुतर कर उतना ही बड़ा रखा जाता था जितने में जनता को मूर्ख बनाने की कहानियां सुनाई जा सकें कि जब केन्द्र के खज़ाने में साधारण विकास कार्यों के लिए ही पर्याप्त धन नही तो इससे आगे की सोच का सवाल नही उठता। सच भी यही है स्विस बैंकों में भरा धन माफ कीजिएगा काला धन भला कौन सा कांग्रेसी दानवीर वापस लाकर सरकारी खज़ाने में डालता।
दूध का धुला तो कोई भी नही है अब हाल ही में बिहार के भाजपा नेता गिरीराज के यहां चोरी हुई और हाईप्रोफाईल मामले के कारण पता नही कैसे पुलिस ने 3 दिन के अन्दर चोरों को पकड़ लिया। बरामद हुए 1 करोड़ 22 लाख से ज़्यादा के अमेरिकन डाॅलर, भारतीय करेंसी में कैश, ज्वैलरी अब थोड़ा सोचिए कि इतना पैसा नेता जी के घर से बरामद हुआ है यदि इनका बैंक एकाउंट और संभवतः सिवस बैंक का खाता भी जांच लिया जाए तो बहुत ज़्यादा न सही पर बुलेट ट्रेन की दो-चार बोगियां तो बन ही जाएंगी। बहरहाल मैं तो प्रधानमंत्री प्रिय मोदी महोदय का ध्यान थोड़ा इस ओर आकर्षित करने का प्रयत्न कर रही थी कि देश की मजबूर जनता से फल-सब्जियों, पेट्रोल, गैस और ट्रेन टिकट पर 100-200 रूपए का लोड बढ़ा कर भी इतना पैसा नही जमा हो सकेगा कि बुलेट ट्रेन देश में दौड़ सके इसका सीधा रास्ता है सभी नेताओं का गला दबाकर उनसे पूछा जाए के उनके टायलेट में लगे एसी का बिल कहां से भरा जा रहा है कहने का मकसद ये कि यदि 1 अरब जनता को छोड़ केवल वर्तमान और पूर्व सांसदों के घर से चिल्लर बटोरे जाएं तो 2-4 बुलेट ट्रेन तो एक साल में ही देश में चलने लगें। मेरी बात को हल्के में न लें ज़रा सोच कर देखें जनता खुश सरकारी खज़ना फुल और आगामी चुनावों के लिए और भी ईमानदार छवि का प्रदर्शन हो जाएगा... कहने का तात्पर्य कि हींग लगे न फिटकरी रंग होगा चोखा ... मतलब केसरिया।
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