धर्मगुरु शंकराचार्य की बात से शत-प्रतिशत सहमत हूं, सबको इच्छानुसार सम्पूर्ण गृहस्थ जीवन का लाभ मिलना ही चाहिए निःसंतान पुरुष दूसरी पत्नी अवश्य लेकर आएं। इसके पूर्व डाॅक्टरी जांच अवश्य करवा लें। कहीं ऐसा तो नही कि भोजन ही बेस्वाद बना हो और हम बर्तन बदल-बदल कर उसका स्वाद अच्छा हो जाने की उम्मीद लगाए बैठे रहे। कमी पुरुष में न हो तो यह संभव है कि दूसरी शादी हिन्दुओं की संख्या बढ़ाने में कारगर हो, परन्तु ऐसी स्थिति में क्या करिएगा जहां पुरुष ही नपुंसक हो ऐसे में तो पत्नी को भी दूसरा पति रखने का अधिकार होना ही चाहिए। वरन् ऐसी किसी भी परिस्थिति में जहां स्त्री को अपने पति से सुख की प्राप्ति न हो चाहे संतान, आर्थिक, मानसिक किसी भी प्रकार का सुख तो ऐसे में पत्नी दूसरा पति रख सकती है। मतलब तो हिन्दूओं को संतानोत्पत्ति से है और यह कार्य तो स्त्री को ही करना है़, बस एक छोटी सी डाॅक्टरी जांच और किसे पति या पत्नी लेकर आना है यह तय हो जाएगा। वैसे बात तो सही है जनसंख्या नियंत्रण का विषय वास्तव में केवल हिन्दुओं पर लागू करके काबुल, कंधार की तरह भारत को भी हिन्दू विहीन बनाने का क्या फायदा? तो जागरुक हिन्दुओं स्त्री-पुरुषों सामने आओ और अपनी अपनी समस्याओं के अनुसार पति पत्नी का चयन करो। मै भी तो देखूं ज़रा किस प्रकार स्वर्ग में निश्चित विवाह बन्धन का भ्रम टूट कर चकनाचूर हो जाता है।
सही कहा मेरे एक फेसबुकिए मित्र ने कि ज़रूरत से ज़्यादा बेवकूफ और ज़रूरत से ज़्यादा समझदार लोगों में एक ही बुराई होती है, दोंनो ही किसी की नही सुनते। इधर खुद पर भी काफी हंसी आई जब लगातार एक मूर्ख को मैं धारा 370 के एक आलेख पर जवाब देती रही, मुझे एहसास हुआ कि मैं भी वही कर रही हूं जो ये मूर्ख कर रही है। उसने ध्यान से मेरे आलेख को पढ़ा ही नही था, उसे अपना सीमित ज्ञान हम सब तक पहुंचाना था और शायद इतना लिखना उसके बस में नही था तो उसने मुझे ही सीढ़ी बनाने की सोच ली। अचानक से आया किताबी और अधूरा ज्ञान कितना घातक होता है ये देख कर हंसी से ज़्यादा दहशत हुई, ऐसे ही अधूरे ज्ञान के साथ भारत की युवा पीढ़ी का भविष्य कहां जा रहा है??? इनकी भाषा और विरोध ने जाने अंजाने इन्हें देश के विरूद्ध कर दिया है, उम्र और युवावस्था की तेज़ी में भ्रष्ट बुद्धि के कुछ लोग आपको बिना समझे ही शिक्षा देने लगें तो एक बारगी तनिक कष्ट तो होता है फिर इन्हीं लोगों की बुद्धि और समझ पर दया भी आती है। उस बेचारी को जाने देते हैं क्यूंकि वो एक आधी अधूरी जानकारी और अतिरिक्त आत्मविश्वास का शिकार युवा थी, थोड़ा ऊपर उठ कर बात करते हैं क
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