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कहीं नही वो नाम तुम्हारा



कुछ पन्ने खोले हैं आज पुराने
सब बेग़ाने से लगते हैं कोई कोई पहचाने
लिखे हैं उन पर किस्से कहानी और फ़साने
हर काग़ज़ के कोने पर एक छींट लगी है
ग़ौर से देखा तो इक टुकड़ा नाम का था
तब भी पूरा नाम नहीं लेती थी तुम्हारा
चाहा कि अब आज अभी लिख दूं फिर से
पर क़लम चली काग़ज़ के कोने पर न दोबारा
अब छींट भर भी नही रहा वो नाम कहीं पर
न ज़ुबान न दिल न काग़ज़ कहीं नही वो नाम तुम्हारा

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