Skip to main content

मोदी ही समझे नारी को...







नारी शक्ति को प्रणाम करने वाले बिन नारी के नर मोदी जी के क्लीन स्वीप वाली चाल पर उनको और मर्दानी किरण बेदी को बधाईयां, मोदी की सफलता का एकमात्र मूलमंत्र कि वे नारी को समझ गए जो नारी को बनाने वाला विधाता भी नही समझ सका। केजरी मुक्त दिल्ली के अभियान को तेज़ी से आगे बढ़ाने के लिए पूरे दल बल सहित हल्ला बोल वाली मुद्रा में दिख रहे मोदी आजकल बड़े उग्र मूड में हैं, और हों भी क्यूं न उग्रवादियों का सफाया करने के लिए उन्हें ऐसा ही रवैया अपनाना होगा, परन्तु एक बार सोच कर देखिए अगर भाजपा हार गई तो किरण बेदी का भाजपा जैसी पार्टी में कैसा भविष्य होगा? भाजपा में स्त्री शक्ति का किसी न किसी पद पर आसीन होना अति आवश्यक है, यदि ये औरतें खाली बैठीं तो भाजपा को भी अनशन पर बैठना होगा...आप नाराज़ मत होईए अभी इसका कारण भी बताए देती हूं, देखिए औरतों में एक ख़ासियत जन्मजात होती है कि किसी भी क़ीमत किसी भी हाल में गुस्से प्यार या ज़िद से अपनी बात मनवाकर ही बैकुण्ठ धाम का रास्ता देखती हैं, इतना आप माने न माने परन्तु मन नही मन सब इस सच से रूबरू हो चुके हैं, विशेषकर विवाहित पुरूष...नारी के कारण रामायण, उसी के कारण महाभारत और उसी के द्वारा तुलसीदास से कालीदास तक सब मिले। कहीं प्रेमवश कहीं प्रेम प्राप्ति वश, पवनपुत्र बाल ब्रम्हचारी हनुमान जी महाराज की पूंछ भी नारी के कारण ही जली...अब बहस न करके बीच की गाथा आप तनिक मनन करके देखें मूलकारण नारी ही है। इस यर्थाथ से परिचित मोदी नारी के इस स्वभाव को ही अपना ब्रम्हास्त्र बनाकर चल पड़े हैं। वो जो कह दे उसको सिद्ध करने की अद्भुत शक्ति रखती है, बा की ज़िद से तो एक बार महात्मा भी चकरा गए थे कि दही के साथ मूली खाना वास्तव में सेहत के लिए ठीक नही, बात इतनी सी थी कि धूप में बैठकर ठण्डी दही का सेवन घातक होता है पर बात जो मूली पे अड़ गई तो बस अड़ गई। बहरहाल, जशोदाबेन ने भी मोदी जी को छोटे मोटे झटके तो दे ही डाले, मातृभक्त मोदी ने अपनी माता से मिले शक्ति मन्त्रों को बाख़ूबी इस्तेमाल करना आरंभ कर दिया है। तो इस अभूतपूर्व ढिठाई वाले गुण से भरपूर अपनी क्रेन बेदी इस मामले में कृष्ण मोदी की अर्जुन सिद्ध होंगी इसमें कोई दो राय नही है, नया मन्त्र होगा कि जिस प्रकार एक सफल पुरूष के पीछे एक सफल नारी का हाथ होता है और यदि एक से अधिक हो तो उस पुरूष की कहानी क्राईम पेट्रोल और सावधान इण्डिया का एपीसोड बनती है उसी तरह एक सफल महिला के पीछे सारे कैबिनेट मन्त्री और स्वयं प्रधानसेवक होता है यदि केवल एक पुरूष हो तो महिला की कहानी एकता कपूर का सीरियल बनती है। कहने का मतलब एक मर्द नरेन्द्र मोदी को बनाने के लिए एक औरत हीराबेन ही काफी है पर इन्दिरा गांधी को बनाने के लिए पूरी कांग्रेस पार्टी फिर सारा देश लग गया, तो अब किरण बेदी को सीएम बनाने के पीछे नरेन्द्र भाई मोदी के मन का एक भय भी है कि अगर इसे व्यस्त न रखा तो ये पूरी पार्टी को अस्त-व्यस्त कर देगी। राजनीति जाने न जाने पर औरत हर परिस्थती में काम चलाना जानती है, ये ख़ूबी तो उत्तर प्रदेश मायावती के रूप में देख चुकी है। एक समय में उजड़ी बस्ती बन चुकी कांग्रेस को मनमोहन सिंह जैसे व्यक्ति की आड़ में बैठकर सोनिया गांधी ने 10 साल राज कर और जमकर लूट मचा कर ये सिद्ध कर दिया कि औरत मनमानी पर आ जाये तो आप किनारे बैठकर देखने के अलावा और कुछ नही कर सकते, इसीलिए मधुमिता शुक्ला, शिवानी, सुनंदा पुष्कर आदि को स्थायी रूप से शान्त करा दिया गया। ये कोई मज़ाक नही कि आनंदी बेन पटेल गुजरात सरकार जस का तस चला रही हैं, स्मृति ईरानी विवादों में घिरती निकलती अपना कार्य कुशलता से कर रही हैं, सुषमा स्वराज भी यथावत पदासीन हैं भले ही उनका काम विदेशमंत्री के रूप में केवल मोदी को एयरपोर्ट पर छोड़ने और लेने जाना रह गया हो, उमा भारती का इस प्रकार चुपचाप रहना वो भी इतने लंबे समय तक कितनी अद्भुत बात है आप ज़रा सोच कर देखिए, विवाह भले ही न हुआ हो परन्तु मोदी में एक साथ इतनी नारियों को व्यवस्थित रखने का दम तो है और गुरूमंत्र ये कि इन्हें येन केन प्रकारेण व्यस्त रखिए, जैसे बराक ने मिशेल को रखा है। दुर्गा पूजने वाले इस देश को अब भारी मात्रा में नारी शासन का उपहार मिलने वाला है, शाज़िया इल्मी का नम्बर भी लगने वाला है और लगना भी चाहिए क्यूंकि आप के धरने अनशन वाले किटाणु अभी उनके भीतर से ख़त्म नही हुए हैं। तो सरकार... मोदी का सिस्टम साफ है देश चलेगा परन्तु बराक-मिशेल स्टाईल मतलब पति पत्नि वाली गृहस्थी की तरह एक बाहर संभालेगा दूसरा घर के भीतर, उसके बच्चे भी होंगे पर नतीजों की शक्ल में जैसे स्त्री-पुरूष समानता, समभाव, समविचार और यही स्थाई उन्नति भी प्रदान करेगा।

Comments

Popular posts from this blog

बंदूक अपने कंधों पर रख कर चलाना सीखिए...दूसरे के नही!

सही कहा मेरे एक फेसबुकिए मित्र ने कि ज़रूरत से ज़्यादा बेवकूफ और ज़रूरत से ज़्यादा समझदार लोगों में एक ही बुराई होती है, दोंनो ही किसी की नही सुनते। इधर खुद पर भी काफी हंसी आई जब लगातार एक मूर्ख को मैं धारा 370 के एक आलेख पर जवाब देती रही, मुझे एहसास हुआ कि मैं भी वही कर रही हूं जो ये मूर्ख कर रही है। उसने ध्यान से मेरे आलेख को पढ़ा ही नही था, उसे अपना सीमित ज्ञान हम सब तक पहुंचाना था और शायद इतना लिखना उसके बस में नही था तो उसने मुझे ही सीढ़ी बनाने की सोच ली। अचानक से आया किताबी और अधूरा ज्ञान कितना घातक होता है ये देख कर हंसी से ज़्यादा दहशत हुई, ऐसे ही अधूरे ज्ञान के साथ भारत की युवा पीढ़ी का भविष्य कहां जा रहा है??? इनकी भाषा और विरोध ने जाने अंजाने इन्हें देश के विरूद्ध कर दिया है, उम्र और युवावस्था की तेज़ी में भ्रष्ट बुद्धि के कुछ लोग आपको बिना समझे ही शिक्षा देने लगें तो एक बारगी तनिक कष्ट तो होता है फिर इन्हीं लोगों की बुद्धि और समझ पर दया भी आती है। उस बेचारी को जाने देते हैं क्यूंकि वो एक आधी अधूरी जानकारी और अतिरिक्त आत्मविश्वास का शिकार युवा थी, थोड़ा ऊपर उठ कर बात करते हैं क...

यहां केवल भूमिपूजन की बात हो रही है

भूमि पूजन कितना मनोरम शब्द, लगभग हर उस व्यक्ति के लिए जिसने अनगिनत अथक प्रयास और श्रम के पश्चात अपना खु़द का एक बसेरा बसाने की दिशा में सफलता का पहला कदम रखा हो। भीतपूजा, नींव की पहली ईंट और भी असंख्य शब्द हैं जिनका उपयोग इस शुभकार्य के पहले किया जाता है। जिस प्रकार विवाह के आयोजन से पूर्व अनगिनत असंतुष्टियां और विघ्न बाधाओं को पराजित करते हुए बेटी के पिता को अंततः कन्यादान करके सहस्त्रों पुण्यों को एक बार में फल प्राप्त हो जाता है वैसे ही  अपने और आने वाली सात पीढ़ियों के सिर पर छत देकर भूमि पूजने वाले पुरूष के भी दोनों लोक सफल हो जाते हैं। घर कितना बड़ा होगा इसका निर्णय प्रथमतः किया जाना कठिन होता है, क्यूंकि आरंभ में रहने वाले कभी दो तो कभी आठ हो सकते हैं किन्तु समय के साथ और ईश्वर की कृपा से हर आकार प्रकार के मकान में अनगिनत लोग समा जाते हैं, रहते हैं, जीवन बिताते हैं, फिर इसी प्रकार उनके बाद की पीढ़ी भी उसी में सहजता से समा जाती है। समस्या घर की छोटाई बड़ाई नही बल्कि समस्या जो सामने आती है वह यह कि भूमिपूजन में किस किस को और कितनों को बुलाएं? जिन्हें बुलाएंगे वो पूरी तरह शान्त और ...

हंसी खुशी भूल चुके...इसमें राजनीति का क्या दोष?

मनुष्य हंसना भूल गया है, हांलाकि इसका एहसास मुझे अतिरिक्त बुद्धि के श्राप से ग्रस्त एक व्यक्ति ने करवाया फिर भी उसको कोसना नही बनता। वास्तव में मुझे इस बात का प्रमाण मिला कि व्यक्ति खुश रहना ही नही चाहता, प्रेम, सद्भाव और आत्मीयता की भी उसे कोई आवश्यक्ता नही क्यूंकि वह जानता ही नही कि वह चाहता क्या है? जिस ओर उसे अपनी मानसिकता का एक प्रतिशत भी प्रभाव दिखता है वह उसी ओर लुढक जाता है, मतलब मर नही जाता बस थाली के बैंगन सा लुढ़क जाता  है। हमारी समस्या यह है कि हम जानते भी नही और निर्णय भी नही कर सकते कि सही क्या है और ग़लत क्या? हम बस इतना जानते हैं कि जो हम मानते हैं बात वही है और अपनी सोच, दृष्टि एवं क्षमता के अनुसार प्रत्येक परिस्थिति को अपने अनुकूल बनाने का वरदान तो ईश्वर ने बिन मांगे ही हमें दिया है। बिल्कुल किसी कैद में पल रहे जीव की तरह जो बंधन को ही जीवन मान लेता है। कोई बुरा होता ही नही केवल उसके कर्म बुरे होते हैं और लोग भी एक के बाद एक पीढ़ी दर पीढ़ी कांग्रेस को ही कोसते आए हैं, असल में बुराई कांग्रेस या कांग्रेसियों में नही उनके कर्मांे में रही। ऐसे ही सपा, बसपा, भाजपा फि...