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यहीं से वापसी करती हूं

अभी सुबह सुबह ही ऐसा लगा मानो...स्वार्थ मुझपर हावी होने का प्रयास कर रहा हो, उधर अख़बारों में किसानों के आंसू देखकर आज ह्रदय तनिक भी विचलित नही हुआ? क्या हो गया मुझे...नयन कोर तो भीग ही जाते थे किसी के भी आंसू देख...फिर याद आया कि इन दिनों मैं दोबारा कस्तूरी मृग सी ख़ुशियां खोजने को दौड़ में शामिल हो गई हूं, एक पल भर की ह्रदयतुष्टि देने वाली भावना मेरे सहज भावुक ह्रदय को दीमक बन कर चाट रही है. मैं केवल मैं मेरी प्रसन्नता, मेरी आवश्यकता...ये तो कुछ ठीक नही मालूम देता. मुझे वापसी करनी ही होगी यथार्थ में , असंभव कल्पना के पीछे दौड़ना मेरी शक्ति को खा रहा है. कल्पना यदि प्रेरणा दे तो ठीक, यदि प्रेरणा भी आपको मात्र प्रेरित करे तो ठीक, यदि कल्पना शक्ति ही कमज़ोरी बन जाए तो ऐसी शक्ति से विरक्ति ही अच्छी...प्रेम मूर्खता की श्रेणी में आने के पहले ही रास्ता बदल ले तो कई दुर्घटनाएं होने से बच जाती हैं तो मैं
यहीं से वापसी करती हूं ये मान कर कि जो ईश्वर ने ही तय कर के आपके सामने रख दिया उसे आप कितना भी प्रयास कर लें परिवर्तित नही कर सकेंगे...

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