झक सफेद कनात के नीचे बार बार टकराती तितलियों को मैं बड़े ध्यान से देख रही थी...या तो रोशनी के आकर्षण से वो मोहित थीं या फिर इस नई छत से थोड़ा उलझन में होंगी...सारा स्कूल प्रांगण दमकने लगा था छन कर आती धूप की खीज भी कुछ कम नही थी, पर आज मुझे तनिक भी गर्मी नही महसूस हुई. हरि ओम तत्सत् का मधुर गुंजार बच्चों का उत्साह से भरपूर स्वरमिश्रण जिसे अब शोर नही कहा जा सकता था आख़िर बीते १५ दिनों का प्रतिफल आज सामने आने ही वाला था. वह परिश्रम, वह समर्पण, वही उत्साह यद्यपि यह सब मेरे भीतर उन नन्हे बच्चों से ४ गुना ज़्यादा था फिर भी इस सबका आनंद हज़ार गुना अधिक महसूस हो रहा था,
११ से १२ बजे फिर १-२-३ और एक पल में कार्यक्रम आरंभ हो चुका था...मैं बोल रही थी लोग सुन रहे थे और बच्चे तैयार मंच पर आने को...वे आए और फिर वह अद्भुत प्रदर्शन जो मेरी आशा से बढ़कर निकला. उन सभी बच्चों को उनके समस्त जीवन के लिए जाने कितना प्रेम कितना आशिर्वाद मैं दे आई यह तो अब मुझे भी याद नही बस एक चमत्कार यही हुआ कि सारथी मेरे भीतर बैठ के हंसते रहे और मुझे किंचित मात्र भी न व्याकुल होने दिया न रोने दिया. इस बार वो मुरली वाला भी स्मृतियों को संजोने में व्यस्त रहा कि मुझे भी स्थिर कर दिया. चुटकी भर भी थकान नही थी...न ही कोई शंका बस बड़ी भूख लगी गाने के बाद, तो जैसे ही मंच के पीछे आई दो कोमल हाथों से नाश्ता भी तुरन्त ही मिल गया विद्ययोत्तमा मैम रीता मैम और रेनू मैम को मेरी सूरत से मेरी भूख का पता चल जाता है... मेरी तरह मातृत्व सुख पुनः अनुभव को तरसते कान्हा लोभवश उस दिन मेरे भीतर ही बैठे रह गए कि जाने कब किस पल मुझे सहलाकर पूछ बैठे कि रितु तुमने कुछ खाया कि नही...और इस आनंद का अनुभव मुझे इस बार उनसे भी अधिक मिला. मैंने कहा था कि मैं कहीं स्कूल के भीतर ही अटक गई हूं ... हां यही वो कारण है प्रेम प्रेम और प्रेम , प्रेमवश मैं जो न करूं कम है ये प्रेम मुझे खींचता है बिल्कुल जैसे पानी प्यासे को, और मुझे तो अब जीवन भर अंतहीन पिपासा का सामना करना है ऐसे में यह प्रेमस्त्रोत ही शांतिस्त्रोत बनेगा.
११ से १२ बजे फिर १-२-३ और एक पल में कार्यक्रम आरंभ हो चुका था...मैं बोल रही थी लोग सुन रहे थे और बच्चे तैयार मंच पर आने को...वे आए और फिर वह अद्भुत प्रदर्शन जो मेरी आशा से बढ़कर निकला. उन सभी बच्चों को उनके समस्त जीवन के लिए जाने कितना प्रेम कितना आशिर्वाद मैं दे आई यह तो अब मुझे भी याद नही बस एक चमत्कार यही हुआ कि सारथी मेरे भीतर बैठ के हंसते रहे और मुझे किंचित मात्र भी न व्याकुल होने दिया न रोने दिया. इस बार वो मुरली वाला भी स्मृतियों को संजोने में व्यस्त रहा कि मुझे भी स्थिर कर दिया. चुटकी भर भी थकान नही थी...न ही कोई शंका बस बड़ी भूख लगी गाने के बाद, तो जैसे ही मंच के पीछे आई दो कोमल हाथों से नाश्ता भी तुरन्त ही मिल गया विद्ययोत्तमा मैम रीता मैम और रेनू मैम को मेरी सूरत से मेरी भूख का पता चल जाता है... मेरी तरह मातृत्व सुख पुनः अनुभव को तरसते कान्हा लोभवश उस दिन मेरे भीतर ही बैठे रह गए कि जाने कब किस पल मुझे सहलाकर पूछ बैठे कि रितु तुमने कुछ खाया कि नही...और इस आनंद का अनुभव मुझे इस बार उनसे भी अधिक मिला. मैंने कहा था कि मैं कहीं स्कूल के भीतर ही अटक गई हूं ... हां यही वो कारण है प्रेम प्रेम और प्रेम , प्रेमवश मैं जो न करूं कम है ये प्रेम मुझे खींचता है बिल्कुल जैसे पानी प्यासे को, और मुझे तो अब जीवन भर अंतहीन पिपासा का सामना करना है ऐसे में यह प्रेमस्त्रोत ही शांतिस्त्रोत बनेगा.
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