सच है कि इतिहास स्वयं को दोहराता है पर अपने साथ इतने चमत्कृत कर देने वाले अनुभवों का भण्डार भी लेकर आता है इसका अनुभव मुझे अब हुआ...कितना संभल गई थी मैं कितना नपा तुला जीवन हो चला था, ऐसा लगा मानों आंधी मेरे आस पास का समस्त खोल उड़ा ले गई... स्वयं पर सभी का इतना विश्वास जानकर ये कछुआ अब बाहर निकल आया है! पर इसकी गति नही बदलेगी. हां! चुपचाप छुपने की प्रवृत्ति संभवत: परिवर्तित हो जाए, कब तक के लिए ऐसा होगा कहना मुश्किल है पर कुछ समय तक तो रहेगा. समाज के प्रति दायित्व निर्वहन से बड़ी ज़िम्मेदारियां ईश्वर मुझे सौंप गया है और निभाने की शक्ति भी देता जा रहा है...इसे भली भांति निभा सकी तो स्वयं को कृतार्थ समझूंगी
सही कहा मेरे एक फेसबुकिए मित्र ने कि ज़रूरत से ज़्यादा बेवकूफ और ज़रूरत से ज़्यादा समझदार लोगों में एक ही बुराई होती है, दोंनो ही किसी की नही सुनते। इधर खुद पर भी काफी हंसी आई जब लगातार एक मूर्ख को मैं धारा 370 के एक आलेख पर जवाब देती रही, मुझे एहसास हुआ कि मैं भी वही कर रही हूं जो ये मूर्ख कर रही है। उसने ध्यान से मेरे आलेख को पढ़ा ही नही था, उसे अपना सीमित ज्ञान हम सब तक पहुंचाना था और शायद इतना लिखना उसके बस में नही था तो उसने मुझे ही सीढ़ी बनाने की सोच ली। अचानक से आया किताबी और अधूरा ज्ञान कितना घातक होता है ये देख कर हंसी से ज़्यादा दहशत हुई, ऐसे ही अधूरे ज्ञान के साथ भारत की युवा पीढ़ी का भविष्य कहां जा रहा है??? इनकी भाषा और विरोध ने जाने अंजाने इन्हें देश के विरूद्ध कर दिया है, उम्र और युवावस्था की तेज़ी में भ्रष्ट बुद्धि के कुछ लोग आपको बिना समझे ही शिक्षा देने लगें तो एक बारगी तनिक कष्ट तो होता है फिर इन्हीं लोगों की बुद्धि और समझ पर दया भी आती है। उस बेचारी को जाने देते हैं क्यूंकि वो एक आधी अधूरी जानकारी और अतिरिक्त आत्मविश्वास का शिकार युवा थी, थोड़ा ऊपर उठ कर बात करते हैं क
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