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इतिहास स्वयं को दोहराता है

सच है कि इतिहास स्वयं को दोहराता है पर अपने साथ इतने चमत्कृत कर देने वाले अनुभवों का भण्डार भी लेकर आता है इसका अनुभव मुझे अब हुआ...कितना संभल गई थी मैं कितना नपा तुला जीवन हो चला था, ऐसा लगा मानों आंधी मेरे आस पास का समस्त खोल उड़ा ले गई... स्वयं पर सभी का इतना विश्वास जानकर ये कछुआ अब बाहर निकल आया है! पर इसकी गति नही बदलेगी. हां! चुपचाप छुपने की प्रवृत्ति संभवत: परिवर्तित हो जाए, कब तक के लिए ऐसा होगा कहना मुश्किल है पर कुछ समय तक तो रहेगा. समाज के प्रति दायित्व निर्वहन से बड़ी ज़िम्मेदारियां ईश्वर मुझे सौंप गया है और निभाने की शक्ति भी देता जा रहा है...इसे भली भांति निभा सकी तो स्वयं को कृतार्थ समझूंगी

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हंसी खुशी भूल चुके...इसमें राजनीति का क्या दोष?

मनुष्य हंसना भूल गया है, हांलाकि इसका एहसास मुझे अतिरिक्त बुद्धि के श्राप से ग्रस्त एक व्यक्ति ने करवाया फिर भी उसको कोसना नही बनता। वास्तव में मुझे इस बात का प्रमाण मिला कि व्यक्ति खुश रहना ही नही चाहता, प्रेम, सद्भाव और आत्मीयता की भी उसे कोई आवश्यक्ता नही क्यूंकि वह जानता ही नही कि वह चाहता क्या है? जिस ओर उसे अपनी मानसिकता का एक प्रतिशत भी प्रभाव दिखता है वह उसी ओर लुढक जाता है, मतलब मर नही जाता बस थाली के बैंगन सा लुढ़क जाता  है। हमारी समस्या यह है कि हम जानते भी नही और निर्णय भी नही कर सकते कि सही क्या है और ग़लत क्या? हम बस इतना जानते हैं कि जो हम मानते हैं बात वही है और अपनी सोच, दृष्टि एवं क्षमता के अनुसार प्रत्येक परिस्थिति को अपने अनुकूल बनाने का वरदान तो ईश्वर ने बिन मांगे ही हमें दिया है। बिल्कुल किसी कैद में पल रहे जीव की तरह जो बंधन को ही जीवन मान लेता है। कोई बुरा होता ही नही केवल उसके कर्म बुरे होते हैं और लोग भी एक के बाद एक पीढ़ी दर पीढ़ी कांग्रेस को ही कोसते आए हैं, असल में बुराई कांग्रेस या कांग्रेसियों में नही उनके कर्मांे में रही। ऐसे ही सपा, बसपा, भाजपा फि...