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इतिहास स्वयं को दोहराता है

सच है कि इतिहास स्वयं को दोहराता है पर अपने साथ इतने चमत्कृत कर देने वाले अनुभवों का भण्डार भी लेकर आता है इसका अनुभव मुझे अब हुआ...कितना संभल गई थी मैं कितना नपा तुला जीवन हो चला था, ऐसा लगा मानों आंधी मेरे आस पास का समस्त खोल उड़ा ले गई... स्वयं पर सभी का इतना विश्वास जानकर ये कछुआ अब बाहर निकल आया है! पर इसकी गति नही बदलेगी. हां! चुपचाप छुपने की प्रवृत्ति संभवत: परिवर्तित हो जाए, कब तक के लिए ऐसा होगा कहना मुश्किल है पर कुछ समय तक तो रहेगा. समाज के प्रति दायित्व निर्वहन से बड़ी ज़िम्मेदारियां ईश्वर मुझे सौंप गया है और निभाने की शक्ति भी देता जा रहा है...इसे भली भांति निभा सकी तो स्वयं को कृतार्थ समझूंगी

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