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बिना मोदी के कांग्रेस को नही आराम



बिना मोदी के कांग्रेस को नही आराम
अख़बार में पप्पू का नया संवाद पढ़ा, मोदी सरकार मुझसे बदला ले किसानों से नही! मोदी सरकार किसानों से कौन सा बदला ले रही है? ये पूछने पर शहज़ादा ए कांग्रेस थोड़ी देर सोच में पड़कर मौन हो जाते हैं क्यूंकि वो भूमि अधिग्रहण शब्द अकसर भूल जाते हैं कि कैसे बोला जाए? किसानों को पेंशन, 2 लाख का बीमा, और मौसम की मार से खराब उपज को भी खरीद लेने की बात राहुल ने अभी पढ़ी नही क्यूंकि उनके यहां संभवतः हिन्दी अख़बार भी नही आते, आए भी क्यूं हिन्दी तो हिन्दुस्तान की भाषा है और स्वदेशी वस्तुओं से राहुल गांधी का क्या लेना देना? आज़ादी के तुरन्त बाद बंटवारे के रिसते ज़ख़्म अभी सूखे भी नही थे और देश की माली हालत ख़स्ता थी, उस समय भी इसके घर से कोट-सूट लगातार धुलने के लिए विमान द्वारा पेरिस जाते थे और पीने के लिए तो आज भी दिल्ली तक श्रीनगर के चश्मे शाही से ही पानी आता ही है। एक साल में हार का ज़ख़्म धोने के लिए इस शाही खच्चर को पूरी दुनिया में थाईलैण्ड ही मिला, क्या चिन्तन मनन और आध्यात्म के लिए हमारे देश में जगह कम पड़ गई थी इस विदेशी को, बेशर्मी की इंतहा देखिए...नेपाल के इतने बड़े विनाश के कई दिनों बाद तक भी इसके कंठ से कोई स्वर नही फूटा संभवतः पुराने बदले के ज़ख़्म अभी तक बिसुर रहे हों जब इसकी मां सोनिया गांधी को पशुपति नाथ जी के दर्शनों से रोक दिया गया था, कारण ग़ैर हिन्दुओं को मन्दिर में प्रवेश की अनुमति नही है और सोनिया गांधी हिन्दू तो दूर भारतीय भी नही हैं। एक तरह से बदले की राजनीति का तोहफा इस देश को कांग्रेस ने ही दिया है।
मोदी की विदेश यात्राओं पर कांग्रेस ऐसे बौरा रही है जैसे मोदी के बिना एक पल भी जीना अब कांग्रेस को गंवारा न हो, 57 दिन तक अपने वोटरों को बताए बिना गायब रहने वाले राहुल गांधी थाईलैण्ड की कौन सी थाई पर बैठकर चिन्तन कर रहे थे यह तो वास्तव में विचार योग्य तथ्य है, यह निर्लज्ज बात-बात पर अपने ही खानदान को बेईज्ज़त करता घूम रहा है, बिना मोबाईल पर पढ़े नेपाल त्रासदी पर एक शोक संदेश न लिख पाने की अक्षमता वाला यह आदमी, मोदी को सूट-बूट वाला चोर कह कर बुला रहा है जबकि इसका पूरा सूटेड-बूटेड कुनबा आधा देश लूट कर खा गया और आधे का सर्वनाश कर गया।
कांग्रेसी दीमकों के अलावा मोदी के परम प्रेमियों में से एक लालू प्रसाद यादव जी के दिव्य भाषण के अनुसार देश में भूकंप आने का कारण मोदी ही है, वे देश पर ध्यान न देकर विदेश यात्रा करते जा रहे हैं, यदि वे देश में उपस्थित होते तो एक तरफ से मोदी जी और दूसरे छोर से लालू यादव धरती को कसकर पकड़ लेते और धरती हिलने नही पाती। अफसोस लालू जी ये काम अकेले नही कर सके और बिहार हिल गया।
53 दिनों में 17 देशों की यात्रा कर अति महत्वपूर्ण 57 द्विपक्षीय करार कर देश को एक तय भविष्य के रास्ते पर ले जाने वाले मोदी सोशल मीडिया पर भी असंख्य ठेलुओं को हंसने हंसाने का मौका दे रहे हैं कि भईया कुछ टाईम और मौज कर लो फिर काम न करने के बेरोज़गारी के बहाने भी नही बचेंगे। काम न मिलने से अवसादग्रस्त युवाओं को रगड़ रगड़ कर कांग्रेसी कार्यकाल में हरामखोरों में बदल दिया गया कि अब काम मिल भी जाए तो भी करने से बचने के लिए सौ कारण होते हैं...पास में!
 एक शोक संदेश न लिख पाने की अक्षमता वाला यह आदमी, मोदी को सूट-बूट वाला चोर कह कर बुला रहा है जबकि इसका पूरा सूटेड-बूटेड कुनबा आधा देश लूट कर खा गया और आधे का सर्वनाश कर गया।
ये ठीक है कि इन लगातार यात्राओं से सबकी निगाह मोदी की विदेश यात्रा पर ही टिक गई है, लेकिन क्या कांग्रेस को पता नही कि ये यात्राएं वही पूर्व निर्धारित यात्राओं में से थीं जो क़ायदे से पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को करनी चाहिए थीं, जो संभवतः घोटालों में व्यस्तता के चलते वो नही कर पाए अथवा सोनिया जी से अनुमति न मिल पाने के कारण वे नही जा सके, ये यात्राएं तो प्रोटोकॉल के तहत ही की गईं, ऐसा तो नही था न कि मोदी ने ओबामा या टोनी अबॉट को अचानक ही फोन पर आने की सूचना दी कि भाई! मैं आ रहा हूं, एयरपोर्ट पे गाड़ी भेज देना, और न ही मोदी के परिवार वाले न ही भाजपा सरकार के अन्य मंत्री मोदी के साथ पिकनिक मनाने गए। वहां हुई विभिन्न देशों के प्रधानमंत्रियों तथा राष्ट्रपतियों, उद्योगपतियों एवं प्रवासी भारतीयों के साथ हो रही तमाम बातचीत एवं गतिविधियों पर मीडिया की बराबर नज़र बनी रही। सारे फायदे के सौदे ही रहे, जिनका नतीजा आने वाले समय में हम लोग निश्चित रूप से देख पाएंगे। मोदी ने किसी भी सूट बूट वाले क्वात्रोची को भारत में नही बसाया, केवल भारत को दुनिया की नज़रों में और अधिक आधुनिक सम्मानित और उन्नत ही सिद्ध किया।

जपान, इज़राईल, कनाडा, चीन, अमेरिका, आस्ट्रेलिया, फ्रांस, इन सभी देशों से आर्थिक निवेश पर हुए क़रार और सत्य नडेला-माईक्रोसॉफ्ट, इन्द्रा नूई-पेप्सिको, मार्क ज़ुकरबर्ग,शेरिल सेन्डबर्ग-फेसबुक, जेफ बेज़ोस-अमेज़न इन सभी उद्योगपतियों से संभावित आर्थिक निवेश पर चर्चा... जो अद्भुत लगा वो यह कि क्या ये क़दम पहले नही उठाए जा सकते थे कि इसके लिए देश को मोदी के प्रधानमंत्री बनने तक रूकना पड़ा। थोड़ा तो सोचना आपका भी लाज़मी है कि हम अपनी तरफ से क्या सिर्फ देश की समस्याएं ही गिनवा सकते हैं, क्या समाधान के संबंद्ध में सोचना सिर्फ और सिर्फ नेता का ही धर्म है? अपना धर्म भी तो निभाते चलिए, आपका ही निर्णय किसी को कर्म करने का अवसर दे रहा है अब उसी की टांग खींच कर क्यूं राष्ट्रद्रोहियों का साथ दे रहे हैं हम? अजीब है लेकिन प्रकृति का ही सत्य है कि केकड़ों को बाल्टी में बांधकर नही डालना पड़ता वो न खुद बाहर निकल पाते हैं, न ही दूसरे को निकलने देते हैं...!

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