पाकिस्तान को दी गई सारी रियायतें और सुविधाएं अब खत्म की जा रही हैं, ऐसे में पाकिस्तान का छटपटाना स्वाभाविक है। भारत से पाकिस्तान के हाईकमीशन को वापस बुलवाना और उसे सामान्य चर्चा का नाम देकर खामोशी का माहौल बनाए रखना आने वाले तूफान के पहले की शान्ति जैसा महसूस हो रहा है। ये और बात कि ये तूफान अब आखिरी बार उठेगा और इस बार ये भारत से पाकिस्तान की ओर दौड़ेगा, शत प्रतिशत कामना है कि इन भीषण हवाओं की चपेट में आकर पाकिस्तान नाम की ये बीमारी भी कहीं लोप हो जाए। यूं भी भारत की बढ़ती जनसंख्या को अब और भी बड़े भारत की आवश्यक्ता है, तो क्यूं न अपनी पुरानी ज़मीन पर ही बसेरा बसाया जाए। आश्चर्य तो इस बात का है कि भिखारियों सा कटोरा लेकर पूरे विश्व से भीख मांगने वाला देश न जाने कैसे और कहां से इतने महंगे विस्फोटकों की व्यवस्था कर लेता है?
पाकिस्तान पर सीधा हमला करना या न करना बेशक हमारी सेना के निर्णय क्षेत्र में आता है इसमें हमारे आपके चिल्लाने या सलाह देने से बात नही बनने वाली। दूसरी तरफ कुछ बातें उनकी भी हो जाए वास्तव में जिनकी शय और मदद से पुलवामा जैसी भयानक घटनाएं आतंकियों के लिए बहुत आसान हो जाती हैं...कश्मीरी पत्थरबाज़ भारतीय सेना के 40 वीर जवानों की शहादत पर पटाखे फोड़कर नाचने वाले ये बेशर्म न जाने क्या देखना या पाना चाहते हैं? ऐसे ही मंदबुद्धियों को आत्मघाती हमलावर बनाने के लिए बार-बार चुना जाता है और उरी, पुलवामा जैसे काण्ड को अंजाम दिया जाता है। कसाई के यहां पिंजरे-रस्सीयों में बंधे मुर्गे और बकरों जैसे ये मूर्ख पत्थरबाज़ ये नही जानते कि पाकिस्तान इन्हें अपना नही मानता और हिन्दुस्तान को ये अपना नही मान रहे। धोबी के कुत्ते जैसी ज़िन्दगी जी रहे ये पत्थरबाज़ न जाने किस आज़ाद कश्मीर का ख्वाब लेकर जी रहे हैं, और ऐसी ज़िन्दगी के भी क्या मायने जो हर वक्त संगीनों और सलाखों के पीछे ही कटती रहे।
कश्मीर के वर्तमान हालातों के ज़िम्मेदार लोगों में से लगभग सभी दुनिया छोड़ चुके हैं, बस उनकी कुछ नाजायज़ औलादें हैं जो कश्मीर के बिगड़े हाल को ज्यूं का त्यूं बनाए रखने में ही अपने को ताकतवर मानते हैं। कुंए के इन मेंढकों को सिर्फ उतना ही आसमान दिखता है जितना कुंए के दायरे में आता हो। उन्हें कोई फर्क नही पड़ता कि देश जिसे भारत कहते हैं वो लगातार उन्हीं की सुरक्षा और विकास में लगा हुआ है। वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए जहां सेना को कार्यवाही करने एवं निणर्य लेने की खुली छूट दे दी गई है, ऐसे में एन्काउंटर वाले क्षेत्र को
घेरे हुए पत्थरबाज़ों की जान को बचाते हुए पुलिस और सेना का ऑपरेशन को अंजाम देना साफ कर देता है कि पत्थरबाज़ों को अभी भी अराजक तत्वों के बजाए, राह भटके हुए नौजवानों की नज़र से देखा जा रहा है वरना सेना के लिए कार्य में बाधा देने वाले ऐसे अराजक तत्वों को देखते ही गोली मार देना कोई असाध्य कार्य नही है।
अब सरकार को बस एक आखिरी वायदा करना होगा कि पुलवामा का हमला आखिरी हमला हो और ये अन्तिम बार हो कि सामने से युद्ध की बजाय हमारे जवानों पर पीठ पीछे से कायराना वार हो जैसा की पाकिस्तान की पुरानी आदत रही है। ऐसा देश जिसने कभी मर्दों की तरह लड़ना नही सीखा, उसकी क्या मान क्या और मर्यादा कैसी?
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