आज़म खान को समझना और समझाना दोनों ही बेहद ज़रूरी है, वरना इसकी जीभ फिसलते हुए किस किस को चाट कर घायल करती जाएगी इसका अभी आपको अंदाज़ा नही है। हांलाकि हमें देष के काम के लिए एक ऐसे ही तेज़ाबी जीभ वाले की ज़रूरत थी जो पाकिस्तान जाकर भारत की तरफ से बात-चीत कर सके, लेकिन क्या कहें कि ये कमबख़्त गद्दार निकला जो खुद ही पाकिस्तान जाकर रहना चाहता है। वो तो कब्ज़ा किए हुए ज़मीनों का मोह है जो छूट नही रहा वरना कब का चला गया होता। उन ज़मीनों को बेचे भी तो किसे ? आजकल कुछ भी छुपा हुआ और गोपनीय नही रहता, ऐसे में ज़मीन का सौदा चुपचाप हो ये कैसे संभव है?
फिलहाल वक़्त काटने और मुफ्त की शोहरत पाने का सबसे बेहतरीन तरीका जो आज़म जानते हैं वो सिर्फ औरतों के अलावा और कुछ नही हो सकता। किसी औरत की किस तरह बेइज़्ज़ती की जाती है ये कोई इनसे सीखे, एकदम सटीक और अचूक तंज कसने छिछोरी शेरो-षायरी वगैरह आज़म के पुराने अस्त्र रहे हैं। ऐसे में जया प्रदा हों या फिर भाजपा सांसद रमा देवी या फिर कल को कोई और स्त्री कोई फर्क नही पड़ेगा, आज़म ढीठ थे और रहेंगे। अपने बुरे बीते बचपन की यादों का विषाद और कुण्ठा लेकर एक ड्रामेबाज़ की तरह ज़िन्दगी जीने वाले आज़म के बारे में बात करना भी समय व्यर्थ बिताने सा है। वैसे भी राजनीति के माथे पर कलंक की तरह पुते कुछ नेता ऐसी लाइलाज बिमारी हैं जिसकी चपेट में इनके थोड़े बहुत चमचे या साथ रहने वाले कुछ मूर्ख आ ही जाते हैं। आप एक बार इन पर कार्यवाही करके तो देखिए कि कैसे बेवक्त मुहर्रम मनाने वालों की भीड़ जुटती है। युवा पीढ़ी को धर्म के नाम पर इस कदर भड़काऊ भाषण सुनाए गए हैं कि अब इस देष का अपना होकर भी वो खुद को इस देष का नही मानता जबकि देष का युवा देष के लिए सिर्फ एक भारतीय है, उसे मानसिक रूप से अपाहिज करके आज़म खान जैसे लोग सिर्फ अपने पीछे की भीड़ को बनाए रखना चाहते हैं।
मुद्दा तीन तलाक का हो या फिर हलाला का कभी भी अपने अपनों के बारे में उनके अधिकारों के बारे में उनके सुख और समृद्धि के बारे में रहन सहन रोज़गार षिक्षा स्वास्थ्य के बारे में ऐसे लोगों ने न कुछ किया न ही इनको लेकर कोई बड़ा कदम उठाया और न ही उठने दिया। वो जानते थे कि इनमें सोच समझ आ गई तो तो आज़म जैसे जो इन्हें इस्तेमाल कर रहे हैं उलटा ये ही लोग इनको उठा कर राजनीतिक परिदृष्य के बाहर फेंक देंगे। मदरसों के भीतर जो भी षिक्षा इन तक पहुंचाई जाती हो वह इनके धर्म और संस्कारों के लिए सर्वथा उचित हो सकती है किन्तु इनके सर्वांगीण विकास, जिसमें व्यक्तित्व का विकास भी है और प्रवृत्ति का विकास भी है इन सबसे ये अछूते ही रह जाते हैं। उसके बाद रट लगाई जाती है अल्पसंख्यकों के विकास और आरक्षित अधिकारों की।
कांग्रेस का साथ देने वाले आज़म जैसे स्वघोषित लीडर जो मानसिक रूप से विकलांग हैं और जिनकी सोच एक कूंए के मेढक से ज़्यादा नही, जो मात्र उतना ही आसमान मानते हैं जितना कूंए के भीतर से दिखता है, ऐसे ही लोगों ने सब कुछ सुनते देखते हुए भी कांग्रेस की चाटुकारिता नही छोड़ी और उनके वोट बैंक को बनाए रखने के लिए बरसों तक अपने ही लोगों के वोट पर चढ़ कर अपनों को छलते रहे। आज़म खान जैसे अपराधी रोज़ रोज़ पकड़ में नही आते, इस बार पकड़ में आया है तो जाने मत देना, इसी में सभी का भला है।
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