कॉरोना वायरस से जूझ रहे दुनिया भर के रोगियों में से कुछ ही ऐसे भाग्यशाली रहे जो और तो कुछ नही लेकिन कम से कम अपनी तकलीफ को लोगों के साथ बांटने में कामयाब रहे। ऐसे तमाम वीडियोज़ में से एक रोंगटे खड़े कर देने वाला एक इटली के युवक का था, जिसका वीडियो कॉलिंग के ज़रिए ब्रूट के एक पत्रकार ने हाल जानने की कोशिश की, अभी वो लड़का जीवित है या नही कह पाना कठिन है किन्तु वीडियो के दौरान लग रहा था कि ये उसकी किसी अन्य व्यक्ति से अंतिम बातचीत रही होगी। 25 साल का यह युवक अपने पिता के साथ रह रहा था, और अचानक सुबह का सामान्य जीवन शाम को बुखार और बेहोशी में बदल गया। भयंकर मानसिक और शारीरिक पीड़ा से गुज़रने का ऐसा अनुभव मात्र इस वीडियो को सुन कर ही लगाया जा सकता है। उस युवक का कहना था कि उसने अनजाने में अपने पिता की हत्या तो की ही जो कि 76 वर्ष के थे और इस वायरस को झेल नही सके और इसकी सज़ा मुझे मिल रही है ऐसा महसूस होता है जैसे पिछले 12-14 दिनों से मैं किसी प्लास्टिक के अंदर सांस ले रहा हूं। अब और न लड़ा जाता है न सहा जा रहा है, जल्दी मरना चाहूं तो वो भी संभव नही। मुझे भूख नही लगती, प्यास भी नही, मुझे वो सब नही चाहिए जिन्हें कमाने के लिए मैं पागलों की तरह दिन रात काम करता रहा। मैं बस अब थोड़ी सी ज़िन्दगी चाहता हूं, जिसे मैं अपने हिसाब से जी सकूं, समुद्र के किनारे गुनगुनाते हुए टहल सकूं और ईश्वर को महसूस कर सकूं। मैं उन सबको ज़िन्दगी की क़ीमत बताना चाहता हूं जो अभी भी अपने जीवन से खिलवाड़ कर रहे हैं। इससे कोई फर्क नही पड़ता कि आप कितनी महंगी गाड़ी से चलते हैं या महंगे कपड़े पहनते हैं या फिर पांच सितारा होटलों में पार्टी करने में सक्षम हैं, जब आपके पास सेहत नही होगी ये सब बेकार बेमानी लगने लगेगा। जीवन ईश्वर की देन है और सेहत आपके अपने हाथ में है, आप हर चीज़ के लिए ईश्वर को ज़िम्मेदार नही ठहरा सकते, बिल्कुल वैसे ही जैसे ज़्यादा नमक डालने पर आपका खाना खराब हो जाता है। नमक आपने डाला था तो इसे खाना भी आपको होगा।
सही कहा मेरे एक फेसबुकिए मित्र ने कि ज़रूरत से ज़्यादा बेवकूफ और ज़रूरत से ज़्यादा समझदार लोगों में एक ही बुराई होती है, दोंनो ही किसी की नही सुनते। इधर खुद पर भी काफी हंसी आई जब लगातार एक मूर्ख को मैं धारा 370 के एक आलेख पर जवाब देती रही, मुझे एहसास हुआ कि मैं भी वही कर रही हूं जो ये मूर्ख कर रही है। उसने ध्यान से मेरे आलेख को पढ़ा ही नही था, उसे अपना सीमित ज्ञान हम सब तक पहुंचाना था और शायद इतना लिखना उसके बस में नही था तो उसने मुझे ही सीढ़ी बनाने की सोच ली। अचानक से आया किताबी और अधूरा ज्ञान कितना घातक होता है ये देख कर हंसी से ज़्यादा दहशत हुई, ऐसे ही अधूरे ज्ञान के साथ भारत की युवा पीढ़ी का भविष्य कहां जा रहा है??? इनकी भाषा और विरोध ने जाने अंजाने इन्हें देश के विरूद्ध कर दिया है, उम्र और युवावस्था की तेज़ी में भ्रष्ट बुद्धि के कुछ लोग आपको बिना समझे ही शिक्षा देने लगें तो एक बारगी तनिक कष्ट तो होता है फिर इन्हीं लोगों की बुद्धि और समझ पर दया भी आती है। उस बेचारी को जाने देते हैं क्यूंकि वो एक आधी अधूरी जानकारी और अतिरिक्त आत्मविश्वास का शिकार युवा थी, थोड़ा ऊपर उठ कर बात करते हैं क
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