एक बेहद रोमांचक और रहस्य भरा शब्द है इत्तेफाक, संयोग, दैवयोग, सन्निपतन, सम्पात अथवा अंग्रेज़ी में कोइंसीडेंस। वैसे तो आप सभी ज्ञानी गुणीजन हैं किन्तु फिर भी एक बात का आप सभी को पुर्नस्मरण कराना आवश्यक है कि इतिहास स्वयं को दोहराता है, फिर चाहे वह युद्ध हो, प्राकृतिक - अप्राकृतिक आपदा हो अथवा महामारी...
ऐसा नही है कि करोना जैसी आपदा इस धरती पर पहली बार आई हो या मानवजाति ने आज से पहले कभी किसी प्रकार की वैश्विक महामारी का सामना न किया हो। फर्क़ केवल पीढ़ियों की सोच का है, सुविधाओं एवं वातावरण का है, हम तब भी लड़े थे जब पिछली बार ईश्वर का कोप हम पर बरसा और हम इतने ढीठ हैं कि फिर से लड़ कर जी रहे हैं और साथ ही ईश्वर को भी प्रसन्न करने के अनगिनत उपाय किए जा रहे हैं, किन्तु इस प्रकार के लेन देन से क्या सरल सहज ईश्वर मान जाएंगे??? हमें तो सौदा करने की लत है, कुछ ले दे के काम बन जाता तो... करोना तो ले दे के भी नहीं मानता, कम्यूनिस्ट रोग है सबको बराबरी की दृष्टि से देखता है। अपने मुहल्ले के बाबू नाई को जो रोग हुआ है वही देश के गृहमंत्री को भी हो गया।
बहरहाल! आईए अब बात करते हैं संयोग की, संयोग यह कि इसी समय युद्ध चल रहा है, बार्डर पर नही किन्तु आपके हमारे भीतर तो चल ही रहा है। धर्म के नाम पर, जाति पंथ संप्रदाय के नाम पर, पड़ोसी के नाम पर, महंगाई-बेरोज़गारी के नाम पर, प्राईवेट स्कूलों की बढ़ी हुई फीस के नाम पर और तो और कहीं मुझे करोना न हो जाए जैसा युद्ध भी आपका निर्मल कोमल मन चटख कर भी लड़ता जा रहा है। ये संयोग नही तो और क्या है कि आप निजी युद्ध में व्यस्त हैं और शासन प्रशासन भी निजी युद्ध को समाप्ति के कगार पर ले जाने को अनवरत प्रयासरत है। संयोग ये कि इसी समय में सीएए के विरोधियों की भी चुपचाप मरम्मत हो रही है। संयोग यह कि इसी समय राम जी को भी वास्तविक सम्मान एवं स्थाई स्थान प्राप्त हो रहा है। संयोग यह कि इसी समय राफेल भारत आया है और संयोग यह भी कि इसी समय रह रह कर माफियाओं और गुण्डों का एन्काउन्टर करवाया जा रहा है। पिछली बार की महामारी का तो हमें आभास होने से पहले ही इलाज करके समाप्त कर दिया गया। स्वाईन और बर्ड फ्लू तो आपको याद होगा ही, इससे पहले कि आप समझ सकें कि आखिर ये बीमारी जानवरों को होती है या मनुष्यों को, उसके पहले ही यह बीमारी मीडिया से जा चुकी थी।
कहा भी जाता है और संयोग भी है कि कहीं बम विस्फोट होता है तो आधे लोग इसके आवाज़ के असर से या तो बीमार पड़ जाते हैं या बेहद कमज़ोर हृदय वालों की जान भी चली जाती है। ऐसी घटना तो आपने भूकम्प के झटकों के बाद भी सुनी होंगी, जहां भूकम्प आता है वहां के जितना या उससे कुछ कम असर उसके झटके महसूस करने वाले क्षेत्रों में भी देखा जाता है। खासकर कि वहां के निवासियों और उनके स्वास्थ्य पर, 2014 में नेपाल में आए भूकम्प के प्रभाव से झटकों के बाद उत्तर भारत से कई मृत्यु संवाद सुनने को मिले, अब यह संयोग नही तो और क्या है?
मृत्यु से अधिक कारगर मृत्यु का भय होता है, आप मरने वाले हैं बस यही सोच काम कर जाती है फिर भले ही आपको कोई भी बीमारी न हुई हो। संयोग ही है कि निरोगी व्यक्ति यदि किसी रोग की दवा जबरन खाने लगे तो एक न एक समय वह इस रोग से ग्रस्त हो ही जाता है। फिलहाल तो देश के निवासी और उनका मन दोनों ही इस समय रोग की आशंका से ग्रस्त है, किन्तु आप सभी से निवेदन है कि मात्र आशंकित रहिए, भयग्रस्त मत रहिए। भय आपकी जिजीविषा के साथ साथ आपकी आत्मा का भी सर्वनाश कर देता है और धर्म में तो अनावश्यक भय को पाप की श्रेणी में रखा गया है। सुरक्षित रहिए, सुरक्षा अपनाईए और प्रसन्न रहिए, जो होना है उसे आप टाल नही सकते कम से कम जो नही होना है उसे आमंत्रित कर ऐसे संयोग मत बनाईए कि अनहोनी हो जाए। मृत्यु से पहले प्राण त्यागने से तो त्रिशंकु ही बनिएगा, न स्वर्ग मिलेगा न ही नर्क!
सही कहा मेरे एक फेसबुकिए मित्र ने कि ज़रूरत से ज़्यादा बेवकूफ और ज़रूरत से ज़्यादा समझदार लोगों में एक ही बुराई होती है, दोंनो ही किसी की नही सुनते। इधर खुद पर भी काफी हंसी आई जब लगातार एक मूर्ख को मैं धारा 370 के एक आलेख पर जवाब देती रही, मुझे एहसास हुआ कि मैं भी वही कर रही हूं जो ये मूर्ख कर रही है। उसने ध्यान से मेरे आलेख को पढ़ा ही नही था, उसे अपना सीमित ज्ञान हम सब तक पहुंचाना था और शायद इतना लिखना उसके बस में नही था तो उसने मुझे ही सीढ़ी बनाने की सोच ली। अचानक से आया किताबी और अधूरा ज्ञान कितना घातक होता है ये देख कर हंसी से ज़्यादा दहशत हुई, ऐसे ही अधूरे ज्ञान के साथ भारत की युवा पीढ़ी का भविष्य कहां जा रहा है??? इनकी भाषा और विरोध ने जाने अंजाने इन्हें देश के विरूद्ध कर दिया है, उम्र और युवावस्था की तेज़ी में भ्रष्ट बुद्धि के कुछ लोग आपको बिना समझे ही शिक्षा देने लगें तो एक बारगी तनिक कष्ट तो होता है फिर इन्हीं लोगों की बुद्धि और समझ पर दया भी आती है। उस बेचारी को जाने देते हैं क्यूंकि वो एक आधी अधूरी जानकारी और अतिरिक्त आत्मविश्वास का शिकार युवा थी, थोड़ा ऊपर उठ कर बात करते हैं क
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